20/07/2013 उत्तर प्रदेश की सियासत
लखनऊ। आजमगढ़ केकस्बा जीयनपुर में पूर्व विधायक सर्वेश सिंह सीपू की हत्या के बाद सूबे की सियासत एक बार फिर लहूलुहान हो गई है। सर्वेश की हत्या ने चुनाव हारने केबाद सुरक्षा से वंचित सियासी शूरमाओं की धड़कन बड़ा दी है।
सर्वेश ने भी शासन-प्रशासन में सुरक्षा की गुहार लगाई थी जो अनसुनी हो गई। यूपी की सियासत में खून-खराबे की आहट वर्ष 1978 में उस समय हुई। जब विधानसभा जा रहे कौड़ीराम क्षेत्र के विधायक रवींद्र सिंह को गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर गोलियों से भून दिया गया। इस हत्या ने जातीय जंग का ऐसा बीज बोया कि पूर्वाचल में कई दबंग,अपराधी, छात्रनेता और निर्दोष मारे गए। फिर 1988 में देवरिया में गौरीबाजार के विधायक रणजीत सिंह की हत्या हुई। यह क्षेत्र जवार की दुश्मनी और पट्टीदारी की लड़ाई का नतीजा थी। 1991 में गोरखपुर के सहजनवां क्षेत्र में पूर्व मंत्री शारदा प्रसाद रावत भी रंजिशन गोलियों से भून दिए गए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विधायक महेंद्र सिंह भाटी की स्वचालित प्रतिबंधित हथियारों से हत्या कर दी गई। यह वह दौर था जब अपराधियों ने सियासत में पांव जमा लिए थे और ठेके पट्टे के लिए खून बहाया जा रहा था। पश्चिम और पूरब के अपराधियों ने मिलकर सियासी गठजोड़ में अपनी साझेदारी निभाई। वर्ष 1996 में गोरखपुर के मानीराम क्षेत्र के विधायक ओमप्रकाश पासवान पर बांसगांव में एक जनसभा के दौरान देसी बमों से हमला किया गया जिसमें पासवान समेत दर्जन भर लोग मारे गए। इसके सालभर बाद ही बाहुबली पूर्व विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही की लखनऊ में हत्या कर दी गई। फरुखाबाद में वर्ष 1998 में पूर्व मंत्री व भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या कर दी गई। सुलतानपुर के इसौली से विधायक इंद्रभद्र सिंह को भी गोलियों से भून दिया गया। इनमें कई हत्याओं की वजह सियासी रंजिश थी, मगर इसके पीछे जर-जमीन का भी मसला छिपा हुआ था। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व मंत्री लक्ष्मीशंकर यादव की हत्या राजधानी में एक तत्कालीन मंत्री द्वारा जमीन हड़पने के लिए ही कराई गई। जुलाई 2001 में मिर्जापुर की सांसद फूलन देवी की हत्या, जून 2005 में पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण मणि त्रिपाठी की हत्या, नवंबर 2010 में मेरठ में पूर्व सांसद अमरपाल सिंह की हत्या ने भी साबित किया कि सियासत में अपराधियों की जड़े काफी गहरी हैं। इलाहाबाद में विधायक राजू पाल व गाजीपुर में विधायक कृष्णानंद राय की हत्या ने सियासी-आपराधिक गठजोड़ की नई स्क्रिप्ट लिखी। सहारनपुर में सरसांवा के विधायक निर्भयपाल शर्मा, राजधानी में विधायक मंजूर अहमद, मऊ में पूर्व विधायक कपिलदेव यादव, कानपुर में कांग्रेस विधायक विलायती राम कात्याल, गाजीपुर में सादात के पूर्व विधायक बीजू पटनायक, एमएलसी भगवान बख्श सिंह, इलाहाबाद में विधायक जवाहर सिंह यादव उर्फ जवाहर पंडित, इलाहाबाद में ही बारा के पूर्व विधायक रमाकांत मिश्र आदि की हत्या यूपी के सियासी इतिहास का काला अध्याय है। पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी पर हुआ जानलेवा हमला भी इसी काले अध्याय की एक कड़ी है।
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