उन्होंने कहा कि मूंगफली और तिल खरीफ की प्रमुख तिलहनी फसलें हैं। किसानों को मूंगफली की बिजाई जून के आखिरी सप्ताह से लेकर जुलाई माह के प्रथम सप्ताह तक पूरी कर लेनी चाहिए। उन्होंने मूंगफली की किस्में एम.एच.-4 व पंजाब मूंगफली नं.-1 बोने की सिफारिश की है। उनके मुताबिक किसानों को एम.एच.-4 के लिए 3015 सैं.मी. तथा पंजाब मूंगफली नं.-1 के लिए 3022.5 सैं.मी. का फासला रखकर बिजाई करनी चाहिए।
बीज की मात्रा के संबंध में उन्होंने एम.एच.-4 के लिए 32 कि.ग्रा. तथा पंजाब मूंगफली नं.-1 के लिए 34 कि.ग्रा. गिरी प्रति एकड़ की दर से डालने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि फसल को दीमक व सफेद लट के प्रकोप से बचाने के लिए 15 मि.ली. क्लोरपाइरीफास 20 ई.सी. या क्विनलफास 25 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से बिजाई से दो-तीन घंटे पूर्व बीजोपचार करना चाहिए । डॉ. सिवाच ने बताया कि मूंगफली बोते समय एक एकड़ भमि में बिजाई के समय 13 कि.ग्रा. यूरिया या 30 कि.ग्रा. अमोनियम सल्फेट, 125 कि.ग्रा. सिंगल सुपरफास्फेट, 16 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश व 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फे ट मिलाकर ड्रिल करना चाहिए। उन्होंने बताया कि मूंगफली में जिप्सम का प्रयोग बहुत लाभदायक पाया गया है।
उन्होंने तिल की बिजाई के लिए हरियाणा तिल नं. 1 व 2 किस्मों की सिफारिश की है। किसान एक एकड़ के लिए लगभग 2 कि.ग्रा. बीज इस्तेमाल करें । उन्होंने बताया कि पौधे से पौधे का फासला 15 सैं.मी. तथा खूडों का फासला 30 सैं.मी. रखने के साथ-साथ बिजाई के समय 35 कि.ग्रा. यूरिया प्रति एकड़ पोरा करने से उत्तम फसल ली जा सकती है।