फोर्स की फायरिंग के बाद लापता हुए 22 ग्रामीणों का अभी तक कोई सुराग नहीं है। आक्रोशित महिलाओं ने प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए पथराव भी किया। एडसमेटा की घटना से कारम परिवार पर दुरूख का पहाड़ टूट पड़ा। इस परिवार के पिता जोगा और उनके पुत्र बदरू तथा पाण्डु व उनका पुत्र गुड्डु की मौत फायरिंग की जद में आने से हो गई।
पोस्टमार्टम के बाद दोनों पिता पुत्रों की अर्थी एक साथ उठाकर उनके परिजन ले गए। इससे कारम परिवार उजड़ गया। अब इस परिवार में सिर्फ दो महिलाएं और एक बच्चा ही है। घटना के बाद से गांव में मातम छाया हुआ है। गोंडी भाषी ग्रामीण आप बीती बताने में समर्थ नहीं है। सात लोगों के मारे जाने और गांव के पुरूषों के भाग जाने के बाद किसी भी घर का चूल्हा नहीं जला। दुधमुंहे व छोटे बच्चे रोते रहे लेकिन उन्हें देखने वाला कोई नहीं था।
महिलाओं ने जब शवों को अपने कांधे में उठाकर गंगालूर ले जाने का फैसला किया तो माहौल गमगीन था। मीडिया से बात करते हंुए ग्रामीणों ने आक्रोश व्यक्त करते हुऎ कहां कि हमारे गांव में स्कूल अस्पताल आंगनबाडी राशन दुकान जैसी कोई भी सरकारी सुविधा नहीं है बावजूद हम जंगलों के सहारे अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
ऎसे में भी सरकार हमें जीने नही दे रही है। हम लोग नक्सली और पुलिस दोनों तरफ से पीस कर मर रहे हैं।आक्रोशित ग्रामीणों ने प्रशासन की ओर से सहयोग देने पहुंचे तहसीलदार व एसडीएम का विरोध किया और पथराव भी किया। घटना में घायल पांच ग्रामीण कारम छोटू (10), कारम सोनू (40), पूनेम सोमलू (15), कारम आयतू (30 व एक बच्चा भी शामिल है।दो दिन बाद बमुश्किल जगदलपुर अस्पताल पहुंच पाए। घायल दो दिन तक गांव में पड़े रहने के कारण अधिक रक्तस्राव के चलते गंभीर हैं। दो ग्रामीणों के शरीर में अभी भी गोली धंसी हुई है।