21/12/2012 74 लाख गाडि़यां, 5901 ट्रैफिक पुलिस
नई दिल्ली।। क्या दिल्ली की ट्रैफिक पुलिस भी वीआईपी मूवमेंट के बोझ तले दबी है ? क्या 6000 पुलिस वाले उस शहर के ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए पर्याप्त हैं , जहां गाडि़यों की तादाद देश के तीन महानगरों की गाडि़यों की कुल तादाद से भी ज्यादा है और जहां हर दिन कोई न कोई रैली , जुलूस या धरना प्रदर्शन होता रहता है ? क्या महज चौराहों पर खड़े ट्रैफिक पुलिस वाले सब जगह नजर रखने और ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन को रोकने में सक्षम है ? अगर आंकड़ों के लिहाज से देखें , तो दिल्ली पुलिस में करीब 83000 पुलिसकर्मी तैनात हैं , जिनमें से महज 5,901 पुलिसकर्मी ही ट्रैफिक यूनिट में हैं , जबकि शहर में रजिस्टर्ड गाडि़यों की संख्या ही अब बढ़कर 74 लाख से ज्यादा हो चुकी है। इसके अलावा बाहरी राज्यों से रोज दिल्ली आने - जाने वाले वाहन अलग हैं। ऐसे में ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन को रोकना और उसी के साथ पीक आवर में लगने वाले जाम , वीआईपी मूवमेंट , जुलूस , रैली , धरने प्रदर्शन आदि से निपटना ट्रैफिक पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती है।
बारिश में जलभराव की वजह से लगने वाले जाम से निपटना हो या ट्रेड फेयर के लिए ट्रैफिक मैनेजमेंट के इंतजाम करने हांे , मेट्रो के कंस्ट्रक्शन की वजह से ट्रैफिक डायवर्जन करना हो या 15 अगस्त और 26 जनवरी पर रास्ते बंद करना हो , हर जगह ट्रैफिक पुलिस का बेहद अहम रोल होता है , लेकिन फोर्स की कमी की वजह से ट्रैफिक पुलिस को अपनी प्राथमिकता तय करनी पड़ती है और उसी के अनुसार काम करना पड़ता है। नतीजा यह होता है कि दिवाली के दौरान ट्रैफिक पुलिस ट्रैफिक मैनेजमेंट पर जोर देती है , तो ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन को रोकने पर ध्यान नहीं दे पाती। आधी फोर्स टिंटेड ग्लास वाली गाडि़यों को पकड़ने में जुटती है , तो रेड लाइट जंप करने या बिना हेल्मेट पहने ड्राइव करने वाले बच निकलते हैं। वीआईपी मूवमंेट के दौरान ट्रैफिक पुलिस का पूरा अमला रास्ता क्लियर करने में लगा रहता है , तो आम लोगों का मूवमेंट थम जाता है और वो जाम में फंसे रह जाते हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक अभी राजधानी में जो आसियान समिट चल रही है , 600 ट्रैफिक पुलिसकर्मी तो सिर्फ उसी के लिए तैनात किए गए हैं , क्यांेकि समिट के दौरान बड़े पैमाने वीआईपी मूवमेंट होता है। इसके अलावा संसद सत्र के दौरान भी 100 से ज्यादा ट्रैफिक पुलिसकर्मी सिर्फ वीआईपी मूवमेंट के मद्देनजर लगाए जाते हैं , जबकि दिन में भी सिर्फ दो से ढाई हजार पुलिस वाले ही दिल्ली की सड़कों पर तैनात रहते हैं। जॉइंट कमिश्नर ( ट्रैफिक ) सत्येंद्र गर्ग का कहना है कि दिल्ली में ट्रैफिक मैनेजमेंट से जुड़ी कई तरह की समस्याएं हैं और इसके लिए कितनी फोर्स पर्याप्त होगी , इस बारे में साफ तौर से कुछ नहीं कहा जा सकता , लेकिन जितनी फोर्स उपलब्ध है उसी के बेहतर इस्तेमाल से नियमों के उल्लंघन को रोकने के साथ साथ ट्रैफिक को भी सही तरीके से मैनेज करने का प्रयास किया जाता है। हालांकि इसके लिए कुछ प्राथमिकताएं जरूर तय करनी पड़ती हैं
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