19/08/2010 जान दे दी पर अंग्रेजों े आगे नहीं झुे रतार
यदि मुझे एक से ज्यादा जिंदगी मिलती तो मैं अपनी हर जिंदगी भारत माता पर न्योछावर कर देता और करता ही रहता, जब तक हमारी भारत माता आजाद न होती....। ये शब्द थे करतार सिंह सराबा के जो उन्होंने देशभक्ति के लिए फांसी पर झूलने से पहले बोले थे। यही वह वीर हिन्दुस्तानी था जिसने अपने देश के फौजियों में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह व देशभक्ति का अलख जगाया था।
16 नवम्बर 1896 को लुधियाना के सराबा गांव में जन्मा यह भारतमाता का सच्चा सपूत एक कृषक परिवार में पैदा हुआ था। बचपन में करतार ने अपने दादा व स्कूल के अध्यापक से शहीदों की खूब गाथाएं सुनी थीं। अमर शहीदों के बलिदानों ने बाल्यकाल में ही करतार के मन में मातृभूमि की रक्षा का जज्बा जगा दिया। मैट्रिक तक अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे लाहौर गए परन्तु पढ़ाई के बीच में ही अपनेे क्रांतिकारी जज्बे के चलते वे सराबा के कुछ साथियों के साथ हिन्दुस्तानी गदर पार्टी में शामिल हो गए। पार्टी की तरफ से करतार सिंह को सेन फ्रांसिस्को जाने का मौका मिला, यहां उन्हें प्रेस का प्रभारी बनाया गया। इस बीच उन्होंने गदर नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकाली, जिसका प्रकाशन चार भाषाओं हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी में किया गया। यह पत्रिका पूर्ण रूप से क्रांतिकारी विचारों से सराबोर थी। इस पत्रिका को गुप्त रूप से हिन्दुस्तानी फौजों तक भी पहुंचाया गया। पत्रिका ने फौजियों की विचार धारा पर गहरा असर डाला, वे फौजी जिन्हें देश के दुश्मनों के इशारों पर नाचना पड़ रहा था विद्रोह करने लगे। इस बात का पता चलते ही ब्रिटिश सरकार ने इस पत्रिका पर रोक लगा दी। कुछ ही समय पश्चात 1915 में पार्टी की हाईकमान द्वारा वीर करतार सिंह को पार्टी के कुछ अन्य सदस्यों के साथ क्रांतिकारी आंदोलन व विद्रोह की तैयारी के लिए सेन फ्रांसिस्को से हिन्दुस्तान भेजा गया। यहां क्रांतिकारी रासबिहारी के साथ मिलकर करतार सिंह ने एक योजना बनाई कि 21 फरवरी 1915 को हिन्दुस्तान की सभी फौजें एक साथ विद्रोह कर अंग्रेजों पर टूट पड़ेंगी। पर, असंयोग से फौजी छावनी में एक अंगे्रज जासूस द्वारा उनकी योजना पहले ही उजागर हो गई और इसमें शामिल बहुत से षड्यंत्रकारियों को गिरफ्तार कर काल कोठरी में डाल दिया गया, बहुतों को फांसी की सजा सुनाई गई। इस बीच क्रांतिकारी रासबिहारी बोस जो कि करतार सिंह की देशभक्ति और उनकी अंग्रेजों से विद्रोह की भावनाओं से बहुत प्रभावित हो चुके थे किसी भी कीमत पर करतार सिंह साथ दे रहे थेे। रासबिहारी ने करतार सिंह को चुपके से काबुल भेज दिया। काबुल में भी करतार सिंह ने अपना प्रयास जारी रखा। यहां उन्होंने अपने स्वतंत्रता के लिए अलख जगाते विचारों से भारतीय क्रांतिकारियों को अपने साथ ले लिया। करतार सिंह यहां काबुल से भारत पहुंचने का निरन्तर प्रयास करते रहे। कुछ ही समय में रासबिहारी बोस ने करतार सिंह को पुनः वापस हिन्दुस्तान बुला लिया। यहा कई क्रांतिकारियों ने मिलकर इलाहाबाद, बनारस, कानपुर, आगरा आदि शहरों में सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार किया। उस समय जब वे सैनिकों में विद्रोह की आग प्रज्ज्वलित कर रहे थे तो एक अंगे्रज अफसर ने उन्हें फौजी साजिश करने के जुर्म में बन्दी बना लिया और लाहौर की खुली अदालत में उन्हें पेश किया गया। उन पर ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने की साजिश का मुकदमा था। मुकदमे के समय करतार सिंह ने अंग्रेजों को ललकारते हुए खुला ऐलान कर दिया कि-हां! मैं यह सब करना चाहता हूं मेरी गदर पार्टी का उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करने का है, क्योंकि यह हुकूमत अन्याय, शोषण और हिंसा पर टिकी हुई है, अंग्रेजों तुम्हें भारत छोड़ना ही पड़ेगा। यह बहुत छोटी उम्र में करतार की अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी ललकार थी। करतार सिंह की नाबालिग उम्र को देखते हुए एक बार तो अंग्रेज मजिस्ट्रेट ने करतार को अपना बयान बदलने व माफी मांगने के लिए कहा। किन्तु क्रांतिवीर करतार ने क्रांतिकारियों के उसूलों को निभाते हुए अंगे्रजों के सामने झुकने से इंकार कर दिया और अपने ही जन्म दिन के दिन भारतीय स्वतंत्रता के लिए फांसी को गले लगा लिया। करतार सिंह को लाहौर के सेन्ट्रल जेल में फांसी पर चढ़ाया गया। फांसी पर जाते समय इस बलिदानी की आंखों में आंसू नहीं था बल्कि चेहरे पर भारत की आजादी के लिए मर मिटने की मुस्कान थी। स्वयं सरदार भगतसिंह भी करतार सिंह सराबा से बहुत प्रभावित थे, वे उन्हें अपना आदर्श मानते थे। करतार सिंह के शहीद होने के बाद से क्रांतिकारियों ने 16 नवम्बर करतार सिंह सराबा के जन्म दिन को शहीदी दिवस के रूप में मनाना शुरू कर दिया था। इस दिन वे करतार सिंह की तस्वीर पर अपने खून का टीका लगाकर पूरे जोश के साथ देश की आजादी के लिए शपथ लेते थे। करतार सिंह की निःस्वार्थ देशभक्ति और आजादी के लिए उनकी कुर्बानी सदा याद की जाती रहेगी। उनका नाम भारतीय इतिहास में हमेशा अमिट रहेगा। ऐसे ही वीरों की कुर्बानी से हमारा भारत स्वतंत्र हो सका है। भारत की भूमि को गर्व है ऐसे वीरों पर जो मातृभूमि के लिए अपनी जान तक देने में पीछे नहीं हटते।
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