19/08/2010 अधिार चाहिए तो क्यों भूल जाते हैं त्र्तव्य
भारत को स्वतंत्र हुए छह दशक से भी ज्यादा बीत चुका है। इतने सालों में हमने आजादी का मतलब सिर्फ अधिकारों के रूप में ही समझा है। स्वतंत्रता की मूल अवधारणा को नागरिक कब का भूल चुके हैं। भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य अधिकारों को हासिल करने में हर व्यक्ति अपनी पूरी शक्ति लगा देता है।
किसी भी संवैधानिक अधिकार का हनन होने पर वह अदालत की चैखट तक पहुंच जाता है। आज जब हम देश का 63वां स्वतंत्रता दिवस मना चुके हैं तो ऐसे में हम भारतीय नागरिकों को अपने अधिकारों को अक्षुण्ण बनाए रखते हुए उन कर्तव्यों को भी याद करना चाहिए जिन्हें हम अनजाने में भूलते जा रहे हैं। अधिकारों ने हमें अंधा बनाया: राजनीति शास्त्र के विद्वान और छात्र जानते हैं कि भारत एक ऐसा उदार लोकतांत्रिक देश है जिसकी मिसाल खुद अमेरिका जैसा ताकतवर देश देता है। इसने गंभीर मंथन और विमर्श के बाद बनाए गए संविधान में स्वतंत्रता के अधिकार को सर्वोपरि रखा। जीवन की रक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार निश्चित तौर से महत्वपूर्ण हैं। पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आड़ में हम लोग कई बार दूसरों के जीवन में प्रायः खलल डालते हैं। अधिकारों ने हमें अंधा बना दिया है। इसका छोटा सा उदाहरण यह है कि अगर आप तेज आवाज में संगीत सुनते हैं या धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर बजाते हैं तो यह आपका व्यक्तिगत अधिकार हो सकता है मगर इसका दूसरों के जीवन पर जो प्रभाव पड़ता है उस समस्या से आप कन्नी काट लेते हैं। हमें अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है। यह बहुत बड़ा अधिकार है जिसका पूरे उत्तरदायित्व से निर्वहन करने में कई बार हम लोग भटक जाते हैं। अभिव्यक्ति का तात्पर्य है कि हम अपने मन की बात बिना किसी दबाव में कहें, मगर ऐसी कोई बात न कहें जिससे किसी व्यक्ति की मानहानि होती हो। निराधार और तथ्यहीन आलोचना का अर्थ है कि हम इस अधिकार को पूरी पवित्रता से नहीं निभा रहे। अधिकारों का दुरुपयोग कब तक: इन्हीं अधिकारों में एक अधिकार यह भी है कि कोई भी भारतीय कहीं भी जाकर कोई भी व्यवसाय कर सकता है। मगर हमारे बीच ऐसे कई लोग हैं जो अपने धंधे से दूसरे के लिए मुसीबत पैदा कर देते हैं। मिसाल के लिए आप अपने जीवन की रक्षा के लिए फुटपाथ पर चलना चाहते हैं मगर दुर्भाग्य से वहां माफिया और पुलिस की शह पर कारोबारी अपना सामान जमा कर व्यवसाय कर रहा है तो कहीं भी व्यवसाय करने का उसका अधिकार दूसरे व्यक्ति के अपने जीवन की रक्षा के अधिकार का हनन है। यह अधिकार का दुरुपयोग है। ऐसा हम कब तक करते रहेंगे। क्यांे नहीं होता अधिकारों का सदुपयोग: भारतीय संविधान सभा के सदस्यों ने बड़ी मेहनत से कई महीनों के मंथन के बाद नवम्बर 1949 में देश के नागरिकों को कई अनूठे अधिकार दिए जो आज भी कई देशों के नागरिकों को हासिल नहीं हैं। इनमें से एक शिक्षा का अधिकार है। इस अधिकार की न केवल सरकार ने उपेक्षा की बल्कि खुद नागरिकों ने भी बरसों इस पर ध्यान नहीं दिया। अगर ऐसा नहीं होता तो भारत की ग्रामीण आबादी निरक्षर नहीं रहती। साक्षर भारत के निर्माण में पिछले अप्रैल से शिक्षा के अधिकार को अनिवार्य किया जाना अहम कदम माना जा सकता है। हर बच्चे को शिक्षा देना अहम कदम माना जा सकता है। अगर हम अब भी इस अधिकार का सदुपयोग नहीं करेंगे तो वंचित और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग हाशिए से बाहर नहीं आ पाएगा। दोहन हुआ अधिकारों का: कुछ बरस पहले हर भारतीय को संसद ने सूचना का अधिकार दिया था। यह एक ऐसा अधिकार था, जिससे हम जान सकते हैं कि सरकार क्या नीतियां बनाती है। विकास कार्यों के लिए कितनी राशि आवंटित हुई। कितना खर्च हुआ। मगर इस अधिकार का भी लोग दोहन करने लगे। यह कुछ उसी तरह हुआ जिस तरह कुछ लोगों ने छोटे-मोटे मामलों में भी जनहित याचिका लगा कर अदालतों का समय बर्बाद करना शुरू कर दिया। सूचना के अधिकार में भी ऐसा हुआ। प्रतिद्वंद्वियांे और पड़ोसियों को परेशान करने के लिए सरकारी दफ्तरों मंे इस अधिकार की आड़ में अर्जियां लगाई जाने लगी। हालत यह है कि अब इस अधिकार में संशोधन के बारे में सोचा जाने लगा है। अधिकार मिलने पर हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास होना चाहिए। हम क्यों भूल गए कर्तव्य: अधिकार तो हमें याद रहते हैं मगर हम सभी अपने कर्तव्यं को भूल जाते हैं। आज जब हम आजादी का पर्व मना रहे हैं तो हमें उन कर्तव्यों को भी याद करना चाहिए। दरअसल अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यानी अधिकार चाहिए तो कर्तव्य को भी निभाओ। भारतीय संविधान में भी कर्तव्यों की व्याख्या की गई है। इसे मूलभूत कर्तव्य बताते हुए हर नागरिक से इसकी अपेक्षा की गई है। उन कर्तव्यों में उस एक बिंदु का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा जिसमें कहा गया है कि हर नागरिक स्वतंत्रता संग्राम के उन आदर्शों को दिल में संजो कर रखेगा और पालन करेगा जिस पर चल कर हमें यह आजादी हासिल हुई है। खेद के साथ कहना पड़ता है कि बहुत कम ही लोग होंगे जो स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरक तत्वों को याद करते होंगे। और देश के लिए मर मिटने और कुछ करने का जज्बा रखते होंगे। ऐसा होता तो भारत में भ्रष्टाचार का स्याह चेहरा नहीं दिखता। आज जब देश में बेकारी, भुखमरी और नाइंसाफी के साथ असमानता दिखाई पड़ती है तो अहसास होता है कि हम भारतीय अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन नहीं कर पाए। हममें से कई लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए। जो राशि जनता के हित में खर्च होनी थी या जिनका देश के विकास से वास्ता था वह मंत्रियों, अफसरों, ठेकेदारों और उनके गठजोड़ वाले समूह के पेट में चला गया। राष्ट्रमंडल खेलों के लिए चल रहे विकास कार्यों में भ्रष्टाचार आपको किस बात का संकेत देता है? जाहिर है आयोजन से जुड़े लोगों की भारत के सम्मान और आदर्श की परवाह नहीं है। कर्तव्य निभाइए फिर अधिकार मांगिए: ज्यादातर भारतीयों को अपने कर्तव्यों की जानकारी नहीं। हमारे मूलभूत कर्तव्य में यह भी शामिल है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखेंगे। लेकिन इसमें कितनों की दिलचस्पी है। हमने इसमें क्या योगदान दिया। उल्टे हमने उस पर कब्जा करने और विकृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दिल्ली में इसके कई उदाहरण मिल जाते है। यही नहीं सांस्कृतिक विरासत वाली जगह के आसपास लोगों ने मकान तक बना लिए। इसी तरह झील, नदियों, जंगलो और जीव जंतुओं की सुरक्षा हमारा कर्तव्य है। यह एक ऐसा कर्तव्य है जिससे हम पूरे पर्यावरण को बचा सकते हैं। लेकिन हम भारतीयों ने न केवल जंगल काटे, नदियां मैली कीं, बल्कि प्लास्टिक के प्रयोग और आधुनिक जीवन शैली से ओजोन की परत तक को नुकसान पहुंचाया। इसी तरह सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है मगर हड़ताल और रैलियों में हम लोग इसे नुकसान पहुंचा कर अधिकार की बात करते हैं और हमें शर्म तक नहीं आती।
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