18/08/2010 फोन से छिन गई निजता
बेचारे टेलिफोन ो हमने क्या-क्या न बना दिया। साथ लेर चलने लगे, लतीफों से लेर बैं ा ाम रने लगे। मोबाइल फोन रोड़ों े ारोबार ा धंधा है। वो सिर्फ ए फोन नहीं है। आपे पास जो नंबर है, वह आपो सिर्फ मोबाइल उपभोक्ता ही नहीं बनाता, बल्ि साथ-साथ अन्य ई चीजों ा खरीदार भी बनाता है।
मसाज वालों से लेर मान बेचने वालों त ा खरीदार। फिर प्रणव मुखर्जी क्यों परेशान हो गए, जब उने पास लोन लेने े निवेदन वाला फोन आया। सबने वित्त मंत्री ी नाराजगी ो रिपोर्ट र दिया, लेिन िसी ने उस लडक़ी ी तारीफ नहीं ि जिसने लोन बेचने े लिए वित्त मंत्री त ो फोन र दिया। वह बाजार ी संभावनाओं ी तलाश में दिन भर न जाने ितनों ो फोन रती होगी। अपशब्द सुनती होगी, डांट खाती होगी। आधी बात में ही ज्यादातर लोग फोन ाट देते हैं। फिर भी अगर िसी ने वित्त मंत्री ो फोन िया, तो मार्ेटिंग े गुरूओं ो ॉल सेंटर वाली उस अज्ञात लडक़ी ी तारीफ रनी चाहिए। उस ॉल सेंटर ो विज्ञापन देना चाहिए ि हम अपना माल देश े वित्त मंत्री त भी बेच सते हैं। पता नहीं, प्रणव दा उस दिन बैठ में न होते, तो क्या रते। क्या वे उस लडक़ी से बात रते, उसे समझाते या वे भी आम उपभोक्ता ी तरह डांट देते ि देखो मैं वित्त मंत्री हूं, फोन ंपनी ही बंद रवा दूंगा। भी-भी झुंझला जाने वाले प्रणव दा ऐसा रते या नहीं, ये उने व्यक्तित्व पर टिप्पणी होगी। मगर इस ए फोन ॉल ने आए दिन आने वाले गैर-जरूरी फोन ॉल्स से परेशान लोगों ो आवाज जरूर दे दी है। अदालत े आदेश और मोबाइल ंपनियों ी नियाम संस्था ट्राई ी ोशिशें बेार हो गई हैं। आप अनचाहे ॉल्स से छुटारा नहीं पा सते। बेहतर है, आप तमाम फोन ॉल्स ो मनचाहे ॉल्स ी तरह लेना शुरू र दें। मोबाइल फोन ने फोन ी निजता खत्म र दी है। पहले आप िसी ो नंबर नहीं देते थे। अब तो ई लोग या आपा दुानदार ही आपा नंबर छपवार बांट देता है। आपा नंबर आपा निजी नहीं रहा। वो सार्वजनि है। अब नंबर छपवाना नाम से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। आप अपने शहर में निलिए और देखिए चारो तरफ। लाखों फोन नंबर जगह-जगह लिखे नजर आएंगे। मोबाइल नंबर ी सर्वव्यापता ी वजह से प्लंबर, ठेेदार, चाबी वाला, मिठाई वाला इत्यादि अपना नंबर िसी न िसी जगह टांग देते हैं। वो वहां बैठते नहीं, लेिन उना नंबर बता रहा होता है ि आप बस ॉल ीजिए, वे िसी अवतार ी तरह सेवा में अवतरित हो जाएंगे। इतना ही नहीं, रेलवे स्टेशन े बु स्टॉल पर जाइए। मोबाइल फोन पर भेजे जाने वाले जोक्स ी छोटी-छोटी िताबें मिल रही हैं। हम पढ़ते ही मैसेज बनार आगे ई लोगों ो भेज देते हैं। मोबाइल फोन े इस संदेश सरदर्द प्रक्रिया में ॉल सेन्टर ही नहीं, आम उपभोक्ता भी शामिल है। वह भी वक्त ा ख्याल िए बिना जब-तब संदेश भेजता रहता है। फोन रने े लिए वक्त ा ख्याल रखने ा शिष्टाचार तो ब ा खत्म हो गया। सिनेमा हॉल में जाइए टूं टूं र संदेश मोबाइल 'े इन बॉक्स में आते-जाते रहते हैं। हम सिनेमा े साथ मोबाइल े इन बॉक्स में झांते रहते हैं। फोन ने बीमार तो नहीं िया, लेिन लगातार संपर् में बने रहने ी ऐसी आदत हो गई ि बिना फोन े हम अेलेपन े शिार हो सते हैं। आपो-हमो लगता है ि मोबाइल ने हमारा ध्यान बांट दिया है, फिर भी आप देखेंगे ि बंटा हुआ ध्यान ा सबसे ज्यादा हिस्सा मोबाइल फोन पर ही वितरित होता है। आप संदेश ो पढ़ते ही हैं। िसी शिक्ष से पूछिए। वह ितना परेशान है इस टूं टूं से। क्लास में बच्चे मोबाइल से खेलने लगे हैं। जल्दी ही मोबाइल फोन पर चैप्टर छोटे-छोटे टुडों में बांटर भेजे जाने लगेंगे। ोई फोन प्रणव दा ो भी आ जाएगा, 'सर, आप अलजेबरा े तीन चैप्टर लेना चाहेंगे, दसवीं में आपे नंबर अच्छे आ जाएंगे। आपो मजा लग सता है, पर ऐसा तो हो ही रहा है। फिल्मी दुनिया में गाने इसी हिसाब से लिखे जा रहे हैं, ताि उना ए अंतरा या मुखड़ा ॉलर ट्यून बनार बेचा जा से। रोड़ों े इस ारोबार ने गीत लिखने और बनाने ा चलन बदल दिया है। अब तो आप क्रिेट से लेर फिल्में भी देखेंगे। थ्री जी आने दीजिए। ॉल सेंन्टर वाली वो लडक़ी फोन पर साक्षात मुस्राती बात रती नजर आएगी। तब पता नहीं ि लोग क्या रेंगे। फोन ाट देंगे या लंबी बात रेंगे। तब हो सता है ि ॉल सेन्टर ा ारोबार भी ग्लैमरस हो जाए। भी अपनी परेशानियों से थ जाएं, तो ॉल सेन्टर में ाम रने वाले इन लडक़े-लड़ियों े बारे में भी सोचिएगा। साधारण परिवार े ये लोग म तनख्वाह में ऐसा ाम रते हैं, जिसे लिए ए सूक्ष्म सामाजि ौशल ी जरूरत होती है। हम फोन े उपभोक्ता उने साथ ितनी बेरहमी े साथ पेश आते हैं। पता नहीं ौन दुखी है, शो में है, दबाव में है, लेिन इनी नौरी इनसे गुस्ताखी रवाती है। थोडी सहानुभूति इनसे भी रखिएगा। अगली बार ोई फोन रे, तो विनम्रता से हिएगा, मोहतरमा, मुझे लोन नहीं चाहिए, हां, आप वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से पूछ लीजिए! ठ्ठ अधिार चाहिए तो क्यों भूल जाते हैं त्र्तव्य
|