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सीजेआई गवई पर हमले के प्रयास को लेकर एआईबीए ने की एफआईआर दर्ज करने की मांग

कानूनी समुदाय और राष्ट्रीय नेताओं ने की घटना की निंदा

‘विष्णु’पर टिप्पणी टालनी चाहिए थी: डॉ. अग्रवाल

भारतीय न्याय संहिता के तहत पुलिस कार्रवाई की मांग

नई दिल्ली, 7 अक्टूबर: ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (AIBA) ने दिल्ली पुलिस आयुक्त श्री सतीश गोलचा को पत्र लिखकर अधिवक्ता राकेश किशोर के खिलाफ तत्काल प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने की मांग की है। आरोप है कि उन्होंने 6 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया।

एआईबीए के अध्यक्ष डॉ. आदिश सी. अग्रवाल ने अपने पत्र में कहा कि यह अभूतपूर्व घटना पूरी कानूनी बिरादरी को गहराई से विचलित करने वाली है।

डॉ. अग्रवाल, जो सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं, ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने अवमानना की कार्यवाही प्रारंभ न करके “उदारता और संयम” का परिचय दिया, किंतु यह कृत्य भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए त्वरित पुलिस कार्रवाई आवश्यक है।

उन्होंने यह भी बताया कि इस घटना की निंदा देश के प्रधानमंत्री, केंद्रीय क़ानून मंत्री, सॉलिसिटर जनरल और बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा की गई है। बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने अधिवक्ता राकेश किशोर को पहले ही निलंबित कर दिया है।

‘विष्णु’पर टिप्पणी टालनी चाहिए थी: डॉ. अग्रवाल

घटना की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. अग्रवाल ने कहा कि यह विवाद न्यायिक कार्यवाही के दौरान मुख्य न्यायाधीश की एक टिप्पणी के गलत अर्थ निकालने से उत्पन्न हुआ।

उन्होंने कहा, “हमारा मानना है कि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा यह टिप्पणी करना आवश्यक नहीं था — ‘अब जाकर स्वयं भगवान से कहो कुछ करें। आप तो भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं, तो जाकर प्रार्थना करो।’ यह टिप्पणी देशभर में अनेक लोगों की भावनाओं को आहत करने वाली मानी गई। किंतु इसके बावजूद, अधिवक्ता राकेश किशोर का यह असभ्य और अनुचित आचरण किसी भी परिस्थिति में सहनीय नहीं है।”

भारतीय न्याय संहिता के तहत पुलिस कार्रवाई की मांग

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि यह घटना थाना तिलक मार्ग के अधिकार क्षेत्र में हुई और उन्होंने पुलिस आयुक्त से अनुरोध किया कि वे धारा 131, 132, 229, 353, 356 और 309 भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत संज्ञेय अपराधों के लिए स्वतः एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दें।

उन्होंने कहा कि पूरी न्यायालय कार्यवाही का वीडियो सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री के पास उपलब्ध है, जो घटना का प्रत्यक्ष साक्ष्य है।

न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने का आह्वान

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट हमारे लोकतंत्र का सर्वोच्च न्याय मंदिर है। उसके मुख्य न्यायाधीश पर किया गया कोई भी आक्रमण न केवल एक व्यक्ति पर हमला है, बल्कि संपूर्ण न्यायिक व्यवस्था और विधि के शासन पर प्रहार है।”

उन्होंने आग्रह किया कि पुलिस को संविधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखने और कानून व न्याय की सर्वोच्चता को पुनः स्थापित करने के लिए निष्पक्ष जांच और त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।

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