Thursday, July 31, 2025
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न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने AI से उत्पन्न ‘फर्जी निर्णयों’ पर जताई चिंता; वरिष्ठ वकीलों से युवा वकीलों को मार्गदर्शन देने का आह्वान

नई दिल्ली,

भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने कानूनी शोध में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) उपकरणों के बढ़ते दुरुपयोग पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने चेतावनी दी कि युवा वकील अदालतों में AI द्वारा उत्पन्न “फर्जी निर्णयों” का हवाला दे रहे हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता खतरे में पड़ सकती है।

ऑल इंडिया सीनियर लॉयर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में बोलते हुए, जिसमें हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त किए गए चार न्यायाधीशों — न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची, न्यायमूर्ति निलय वी. अंजारिया, न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर — का सम्मान किया गया, न्यायमूर्ति बिंदल ने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे युवा वकीलों को मार्गदर्शन दें और उन्हें प्रशिक्षित करें।

उन्होंने कहा, “भारत और अमेरिका दोनों में, युवा वकीलों द्वारा AI सर्च मॉडल के उपयोग से फर्जी निर्णय अदालतों में प्रस्तुत किए गए हैं। कभी-कभी वकील सिर्फ एक या दो कीवर्ड डालते हैं और जो निर्णय सामने आता है, वह या तो गलत होता है, या अल्पमत राय होती है या पूरी तरह से AI द्वारा गढ़ा गया होता है, उसे बिना जांच के अदालत में पेश कर दिया जाता है।”

इस प्रवृत्ति को “खतरे की घंटी” बताते हुए उन्होंने कहा कि AI पर बिना सोचे-समझे निर्भरता न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता को खतरे में डाल सकती है। उन्होंने जोर देते हुए कहा, “वरिष्ठ वकीलों को आगे आकर युवा अधिवक्ताओं को इन खतरों के प्रति जागरूक करना चाहिए।”

न्यायमूर्ति बिंदल ने यह भी कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में जूनियर और सीनियर वकीलों दोनों का योगदान अमूल्य है। “यह कहा जाता है कि निर्णय न्यायाधीश देते हैं, लेकिन उसका आधार अक्सर जूनियर वकीलों द्वारा किया गया शोध और वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा दी गई दलीलों में होता है।”

इस अवसर पर उपस्थित न्यायमूर्ति पी. बी. वराले ने नवनियुक्त न्यायाधीशों के उच्च न्यायालयों में दिए गए योगदान की सराहना की और उनके साथ अपने पुराने संबंधों को याद किया।

न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं की तुलना “बरगद के वृक्ष” से की, जिसकी छाया में न्यायालय और विधि का शासन फलता-फूलता है। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का क्षेत्राधिकार और शक्ति कॉमनवेल्थ के किसी भी न्यायालय से अधिक व्यापक है।”

न्यायमूर्ति निलय वी. अंजारिया ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। यह उत्तरदायित्व केवल स्वयं के प्रति नहीं, बल्कि संस्था और समाज के प्रति भी है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह मुझे इस जिम्मेदारी को निभाने की शक्ति दे।”

न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई ने न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “बार और बेंच न्यायपालिका के दो स्तंभ हैं। कुछ भी स्थायी नहीं होता, न ही कोई व्यक्ति अपरिहार्य होता है — केवल संस्था ही शाश्वत होती है।”

न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर ने वरिष्ठ वकीलों को “मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक” बताया और कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय केवल संवैधानिक वादा न रह जाए, बल्कि व्यवहारिक रूप से साकार हो।”
इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ जुरिस्ट्स (लंदन) के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आदीश सी. अग्रवाला ने भारतीय न्यायपालिका की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के श्रेष्ठतम न्यायालयों में से एक है। उन्होंने कहा कि इसका न्याय प्रदान करने का कार्यक्षमता, निष्पक्षता और संवेदनशीलता से परिपूर्ण है, और यह वैश्विक स्तर पर आशा की किरण बना हुआ है। उन्होंने इसके दुनिया के सर्वाधिक मामलों का निपटारा करने वाले न्यायालयों में से एक होने की भी सराहना की।

राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पी. विल्सन ने सभा को संबोधित करते हुए बताया कि उन्होंने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने हेतु संसद में एक निजी विधेयक पेश किया है, जो न्यायिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

उड़ीसा के महाधिवक्ता श्री पितांबर आचार्य ने नव नियुक्त न्यायाधीशों को बधाई देते हुए विश्वास जताया कि उनके अनुभव और ज्ञान से सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा और परंपराएं और अधिक सुदृढ़ होंगी, जिसने पिछले पचहत्तर वर्षों से विधि की महत्ता को बनाए रखा है।

न्यायमूर्ति बिंदल की यह टिप्पणी उस समय आई है जब AI के न्यायिक प्रक्रियाओं में उपयोग को लेकर चिंताएं तेज़ हो रही हैं। उल्लेखनीय है कि 20 जुलाई को केरल उच्च न्यायालय ने एक आदेश में न्यायिक कर्मचारियों को आदेश प्रारूप तैयार करने के लिए ChatGPT जैसे AI उपकरणों का उपयोग न करने की सलाह दी थी, साथ ही यह भी कहा कि AI के प्रयोग से पहले विधिवत प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए। यह भारतीय न्यायिक प्रणाली में अपनी तरह की पहली सलाह थी।

जैसे-जैसे AI तकनीक विकसित हो रही है, न्यायमूर्ति बिंदल की यह चेतावनी समय की मांग बन गई है — कि हम नैतिक सतर्कता, मानवीय विवेक और मार्गदर्शन से न्याय प्रणाली की पवित्रता की रक्षा करें।

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