06/10/2012 मोबाइल नहीं, मुसीबतों का टावर
नोएडा मोबाइल टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड के घातक परिणामों के साक्ष्य मौजूद होने के बावजूद शहर में कोई एजेंसी अवैध टावरों की जांच को तैयार नहीं है। 2010 में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश के बाद अथॉरिटी की ओर से सील 250 अवैध टावरों को डी सील कर दिया गया था। तब से अब तक अवैध टावरों के खिलाफ न तो कोई अभियान चलाया गया है , और न ही जांच हुई है। इस समय शहर में रेजिडेंस एरिया के साथ - साथ हॉस्पिटल , स्कूल आदि जगहों पर मोबाइल टावर लगे हैं। अप्रूव्ड सेक्टर और कमर्शल एरिया में अथॉरिटी के नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट व महंगी फीस के झंझट से बचने के लिए मोबाइल कंपनियों ने गांवों को सेफ मानकर वहां ज्यादातर टावर लगा दिए हैं। ऐसी जगहों पर अथॉरिटी के सीधे दखल नहीं होने का फायदा मोबाइल कंपनियां और मकान मालिक उठा रहे हैं और लोगों की जिंदगी के साथ समझौता कर रहे हैं।
निठारी में बज रही खतरे की घंटी निठारी गांव में कुल 5 टावर लगे हैं। टावर लगने के बाद से यहां कैंसर के दर्जनों मामले सामने आए हैं। हालांकि कैंसर की वजह मोबाइल टावरों से निकलने वाला रेडिएशन है या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हुई है। वहीं लोगों को लगता है कि कहीं न कहीं रेडिएशन भी इसकी वजह है। यहां रहने वाले राकेश की बेटी राधा (21) की शादी से 3 महीने पहले 2004 में कैंसर की वजह से मौत हो गई थी। मौत से करीब 6 महीने पहले बीमार होने पर हॉस्पिटल की जांच में ब्रेस्ट कैंसर की पुष्टि की गई थी। कैंसर से मौत का निठारी में यह अकेला मामला नहीं है। अगस्त महीने में इसी गांव के राजिंदर पंडित की मौत भी कैंसर से हुई थी। 2003 से 2007 के बीच रतन पंडित , सत्य प्रकाश , सुशील गुर्जर समेत गांव के कई लोग कैंसर की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं। इन सभी मामलों में बीमारी के अलावा एक और समानता है। दरअसल सभी के मकान मोबाइल टावर वाले मकानों के 200 मीटर एरिया के दायरे में हैं। राधा के पिता राकेश ने बताया कि गांव में 2002 में पहला टावर लगा था। कुल 5 टावर गांव में बने मकानों पर लगे हैं। टीवी पर आने वाले कार्यक्रमों और चर्चाओं में मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगों से शरीर को होने वाले खतरों के बारे में बताया जा रहा है। अब हम लोग इन्हें हटाने के लिए डीएम और अथॉरिटी को लेटर लिख रहे हैं। जीव - जंतुओं पर भी पड़ रहा असर टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का असर मानव के साथ - साथ जीव जंतुओं पर भी पड़ रहा है। तितली , मधुमक्खी , गोरैया जैसे पक्षी शहरों से विलुप्त हो रहे हैं। देश विदेश में हुई कई रिसर्चों ने भी मोबाइल टावरों की वजह से हेल्थ को होने वाले नुकसान को बताया है। लंबे समय तक ऐसे इलाकों में रहने वालों को स्किन व कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रस्त होने की संभावनाएं जताई गई हैं। डॉक्टरों के अनुसार टावर के आसपास इलाकों में रहने वालों में शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता में कमी , मेमरी व एकाग्रता में कमी , पाचन तंत्र में गड़बड़ी आदि परेशानी होती है। ये हैं गाइडलाइंस 2006 में डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकम्यूनिकेशन की तरफ से जारी की गई थीं ये गाइडलाइंस। 1. हॉस्पिटल , स्कूल , एजुकेशनल इंस्टिट्यूट के 100 मीटर एरिया में टावर लगाने पर रोक। 2. टावर के लिए पहली प्रायॉरिटी के रूप में फॉरेस्ट लैंड का इस्तेमाल करें। 3. आबादी से दूर खुले एरिया में लगाएं टावर। 4. पार्क एरिया में ऊंचाई पर टावर एरिया की आरडब्ल्यूए के अप्रूवल के बाद लगे। अथॉरिटी या प्रशासन के लिए ये मानक 1. टावर लगाने वाले स्पेस का स्ट्रक्चरल सेफ्टी सर्टिफिकेट हो , जिसे अप्रूव्ड इंस्टिट्यूट की ओर से जारी किया गया हो। 2. अथॉरिटी बाइलॉज़ के मुताबिक और तय फीस देने के बाद अप्रूवल देती है। 3. टावर बिल्डिंग से 3 मीटर दूर हो। 4. एंटीना की फेंसिंग आबादी से विपरीत तरफ हो , जबकि बिल्डिंग से 3 मीटर ऊंचाई हो। 4. कंपनी व स्पेस किराए पर देने वाले को ऐफिडेविट देना होगा।
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