09/04/2010 मजहब के आधार पर अब होगी छात्रों की गणना
जय हिन्द संवाद नई दिल्ली। देश के सभी माइनॉरिटी शिक्षण संस्थाओं को अब मजहब के आधार पर छात्रों की गणना करनी होगी। देश में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की सुप्रीम संस्था राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग ने ऐसा करने के लिए राज्य सरकारों को चिट्ठी लिखी है। इसके तहत हर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान को ये बताना होगा कि वहां किस मजहब के कितने बच्चे पढ़ते हैं। अगर इस गिनती में अल्पसंख्यक छात्रों की तादाद कम पाई गई तो ऐसे संस्थानों का माइनारिटी स्टेटस छीन लिया जाएगा। अब बच्चों की पहचान धर्म के आधार पर करने की अजीबो-गरीब कोशिश शुरू की जा रही है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान धर्म के आधार पर छात्रों की लिस्ट तैयार करें। इसके अलावा संस्थान को ये भी बताना होगा कि उसमें निर्धारित तादाद में अल्पसंख्यक बच्चे पढ़ रहे हैं या नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उस कॉलेज या स्कूल से माइनारिटी का दर्जा छीन लिया जाएगा। अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग की दलील है कि ये निर्देश सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों को देखते हुए लिया गया है। आयोग के निर्देश के मुताबिक आर्थिक मदद पाने वाले सभी अल्पसंख्यक संस्थानों को माइनॉरिटी तबके के बच्चों के लिए एक निश्चित फीसदी आरक्षण देना होगी। गैर सहायता प्राप्त माइनॉरिटी शिक्षण संस्थाओं को और भी ज्यादा आरक्षण माइनॉरिटी तबके के बच्चों को देना होगा। ये प्रतिशत खुद राज्य सरकारें तय करेंगी। आयोग ने एक और अहम बदलाव किया है। माइनॉरिटी स्टेट्स हासिल करने के लिए भी कॉलेज या स्कूल को धर्म के आधार पर छात्रों की गिनती का पूरा ब्यौरा देना होगा। राइट टू एजुकेशन को लेकर कई राज्य सरकारें पहले ही केंद्र सरकार के साथ दो दो हाथ करने के मूड में हैं। ऐसे में आयोग के इस कदम की प्रतिक्रिया देखने वाली होगी। किसी भी काम का मकसद महत्वपूर्ण होता है, मगर उसका असर भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता है। ऐसे में सवाल है कि आखिर क्या असर होगा जब किसी रमेश, असलम या जोसेफ को ये पता चलेगा कि उनके स्कूलों में उन जैसों की गिनती की जा रही है।
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