11/08/2012 मध्यप्रदेश में चल रहा है श्वेत क्रांति का दौर
भोपाल। मध्यप्रदेश में पिछले आठ साल से श्वेत क्रांति का दौर चल रहा है। श्वेत क्रांति अर्थात दुग्ध उत्पादन में निरंतर इजाफा दर्ज हो रहा है। वर्ष २००४ में वार्षिक दुग्ध उत्पादन जहाँ ५,३८८ मी. टन था वहीं वह वर्ष २०१२ में बढ़कर ८,१४९ मी. टन हो गया। बीते आठ वर्षों में दुग्ध उत्पादन में वार्षिक वृद्धि दर ५.३१ प्रतिशत रही है, जो अपने आप में उल्लेखनीय है। इसके पूर्व वर्ष २००१ से २००४ तक वार्षिक वृद्धि दर मात्र ४.२ प्रतिशत ही रही। अप्रैल, २००१ में ४,४६१ मी. टन की अपेक्षा वर्ष २००४ में दुग्ध उत्पादन बढ़कर मात्र ५,३८८ मी. टन ही पहुँचा था।
प्रदेश में सहकारी समितियों से प्रतिदिन संकलित किया जाने वाला दूध जो वर्ष २००१ में २ लाख ९४ हजार ३०० किलोग्राम प्रतिदिन था, वह अगले तीन साल वर्ष २००४ में बढ़कर २ लाख ९४ हजार ४६५ किलोग्राम तक ही पहुँच सका। वर्ष २००४ से लेकर २०१२ तक आठ साल में प्रतिदिन दुग्ध संकलन में ११.८५ प्रतिशत की वार्षिक दर वृद्धि रिकार्ड की गई। आठ साल पहले जहाँ प्रतिदिन २ लाख ९४ हजार ४६५ किलोग्राम दुग्ध संकलित होता था, वह वर्ष २०१२ में यह बढ़कर ७ लाख २१ हजार किलोग्राम प्रतिदिन पहुँच गया है। वर्ष २०११ की अपेक्षा वर्ष २०१२ में एक लाख ३५ हजार ९१३ किलोग्राम प्रतिदिन दुग्ध संकलित हो रहा है। दुग्ध संकलन में तेजी से हो रही प्रगति राज्य सरकार के मजबूत इरादों को परिलक्षित करती है। इसी प्रकार आठ साल पहले वर्ष २००१ में जहाँ दुग्ध सहकारी समितियों की संख्या मात्र २,७१२ थी, वहीं वह वर्ष २००४ में बढ़कर मात्र ३,०३२ तथा वर्ष २०११ में बढ़कर ४,११६ तथा वर्ष २०१२ में बढ़कर ४,८३७ हो गई है। समितियों की संख्या में वर्ष २००४ से वर्ष २०१२ तक हुई वार्षिक वृद्धि की दर ६ प्रतिशत रही है। पिछले आठ साल के दौरान हुई यह वृद्धि भी मध्यप्रदेश में हो रही श्वेत क्रांति की ओर इंगित करती है।
|