लेकिन जवाहरलाल नेहरु विश्वविदयालय के समाज शास्त्र विभाग में प्रोफेसर आनंद कुमार का मत बल से अलग है. कुमार कहते हैं कि अन्ना का आंदोलन और रामदेव का आंदोलन दोनों एक गाड़ी के दो पहिए हैं. आनंद कुमार के अनुसार दोनों ही जनभावनाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं और दोनों के उद्देश्य राजनीतिक नहीं हैं.
रामदेव के आंदोलन के आरएसएस के साथ रिश्तों की बात पर आनंद कुमार कहते हैं कि "हाँ यह साफ़ नहीं है कि दोनों में रिश्ते क्या हैं लेकिन कभी-कभी आंदोलन नेता से बड़े होते हैं जैसे स्वतंत्रता का आंदोलन गाँधी जी से बड़ा था और आपातकाल का आंदोलन जय प्रकाश नारायण से बड़ा था."
हरतोष का मानना है कि अन्ना का आंदोलन समाप्त हो गया लगता है, उसके आगे कोई बड़ा रूप लेने की कोई संभावना नहीं है. ज़्यादा से ज़्यादा उसका असर यह होगा कि अगले आम चुनाव में इसका कॉंग्रेस को कुछ नुकसान होगा. हरतोष कहते हैं, " रामदेव का आंदोलन अगर चुनाव तक किसी तरह से बच गया तो उसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी को लाभ होगा और यही उसकी नीयत है लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनका यह उद्देश्य सफल होगा."
आनंद कुमार का मानना है कि इन आन्दोलनों से क्रांति होगी और भारतीय राजनीति का दशा और दिशा दोनों बदल जाएंगी.
केवल विशेषज्ञ ही नहीं सोशल मीडिया पर मौजूद लोग भी इन आंदोलन के चरित्रों पर बंटे हुए हैं. फेसबुक के बीबीसी हिंदी के पन्ने पर छिड़ी एक गर्मा-गर्म बहस में यह विभजन साफ़ दिखता है.
फेसबुक पर अमित राठौर को "अन्ना की टीम कांग्रेसी लगती है." तो विनय जोशी कहते हैं " बाबा अब योग में ध्यान दें क्योंकि रामलीला मैदान से वो भागे थे तो हमने देखा था."