08/08/2012 प्रदेश में दस लाख से अधिक मुकदमे लंबित
लखनऊ। तमाम कोशिशों के बावजूद यूपी की अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अकेले इलाहाबाद हाईकोर्ट व उसकी लखनऊ बेंच में 10 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं। इसके अलावा लोकसेवा अधिकरण में नौ हजार से अधिक मामले लंबित हैं। इसके बावजूद 13वें वित्त आयोग से न्यायिक सुधार के लिए मिले धन को खर्च करने में राज्य सरकार फिसड्डी साबित हो रही है। राज्य सरकार के न्याय विभाग का कहना है कि मुकदमों में भारी विचाराधीनता को समाप्त करने और जल्दी निपटारे के लिए राज्य में मुकदमा नीति तैयार की गई है।
विभाग मानता है कि प्रदेश में लंबित मुकदमों की संख्या सबसे ज्यादा है। राज्य को एक जिम्मेदार वादी के रूप में मुकदमों की पैरवी करनी चाहिए। इतना ही नहीं प्रदेश में न्यायालयों की कार्य क्षमता बढ़ाने के लिए राज्य के हर जिले में एक एक कोर्ट मैनेजर और इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो कोर्ट मैनेजर और लखनऊ बेंच में एक कोर्ट मैनेजर तैनात किया गया है। निचली अदालतों में लंबित मुकदमों के निपटारे के लिए सरकार काफी समय से लोक व मेगा लोकअदालत कैंप आयोजित करती है। इतना ही नहीं सरकार ने मुकदमों के निस्तारण के उपायों का पता लगाने तथा जनता को सस्ता व शीघ्र न्याय दिलाने के लिए विधि आयोग की स्थापना की है। पूर्व न्यायधीश व नैतिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सीबी पांडेय ने भास्कर से बात करते हुए कहा कि अदालतों की हालत तारीख पर तारीख की हो गई है। सरकार सबसे पहले न्यायाधीश की खाली सीटें भरे, जिसके कारण काम करने वाले न्यायाधीशों से बोझ कम हो। उन्होंने कहा कि काम के दबाव के कारण कोर्ट में मुकदमे जल्दी जल्दी निपटाने की कोशिश होती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के 160 पद हैं, जबकि हाईकोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक मुख्य न्यायधीश के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 63 व लखनऊ बेंच में महज 21 न्यायधीश कार्यरत हैं। रोचक बात यह है कि 13वें वित्त आयोग ने प्रदेश के न्यायिक सुधार के लिए 645.78 करोड़ दिया है। प्रदेश को 2010-11 में 129.16 करोड़ दिए गए। इसमें से सरकार महज 6.7 करोड़ ही खर्च कर सकी। 2011-12 में 64.577 करोड़ दिए गए, जिसमें सिर्फ 41 करोड़ ही खर्च हो सके। पूर्व न्यायधीश पांडेय ने कहा कि जैसे जैसे आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं कोर्ट में मुकदमे भी बढ़ रहे हैं। केन्द्र सरकार जितनी जल्दी-जल्दी नए कानून बना रही है उतनी तेजी से न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं हो रही है। प्रदेश में सीबीआई जांच की बाढ़ है, इसके बाद भी प्रदेश में महज 6 सीबीआई कोर्ट हैं। लखनऊ में सीबीआई के 4 अतिरिक्त न्यायालय व गाजियाबाद में दो अतिरिक्त न्यायालय काम कर रही है। न्यायालयों पर काम का बोझ होने के कारण मुकदमे लंबित हो रहे हैं।
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