दिल्ली सरकार का मजदूरों को विधानसभा चुनावों को देखते वेतन
बढ़ोत्तरी मात्र एक जुमला और 40 लाख मजदूरों से भद्दा मजाक।
-मुनीश कुमार गौड (पूर्व कर्मचारी क्षतिपूर्ति आयुक्त, कल्याण आयुक्त, संयुक्त
श्रमायुक्त, दिल्ली सरकार)
10 वर्षों से सत्ता पर काबिज दिल्ली सरकार ने क्या कभी न्यूनतम वेतनमान में बढ़ोत्तरी के नाम पर
मंहगाई भत्ता कागजों पर घोषित करने बाद यह तक नहीं सोचा कि अभी तक 10 वर्ष पूर्व का ही
घोषित न्युनतम वेतन क्यों दिया जा रहा है आप किसी भी दुकान, स्टोर, रेस्टोरेंट, पेट्रोल पम्प,
में लगे सिक्योरिटी गार्ड , फैक्ट्री में कार्यरत कर्मचारी से स्वयं पूछिये कि उसको कितना वेतन
मिलता है। जानकर आश्चर्य होगा कि दिल्ली की ने अभी तक 10 वर्ष पूर्व के वेतन को असल तौर
पर कर्मचारियों तक नहीं पहुंचाया है। उनको अभी भी मात्र 8 हजार रुपये से 12 हजार रुपये वेतन
ही मिल पाता है। क्योंकि दिल्ली के श्रम विभाग ने इनको न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के अंतर्गत
संस्थानो का निरीक्षण करके अभी तक लागू नहीं कराया है।
दिल्ली सरकार में कार्यरत ठेका मजदूरों की स्थिति भी कोई खास नहीं है। 2013 में अरविन्द
केजरीवाल ने वादा किया था कि सभी ठेकेदार के द्वारा कार्यरत लगभग 40 हजार कर्मचारियों को
स्थाई कर दिया जाय ेगा और उनको सरकारी वेतनमान के अनुसार 30 से 40 हजार रुपये प्रतिमाह
मिलेगा। किन्तु 3 चुनाव जीतने के पश्चात भी अभी स्थिति ज्यों की त्यों है और जानकारी अनुसार
उनको नौकरी पाने के लिये पहले 50 हजार से 1 लाख रुपये की रिश्वत देनी पड़ती हे और बाद मे
उसे मात्र न्युनतम वेतन में से धनराशि काटकर 15 से 16 हजार रुपये हाथ में आती है। दिल्ली के लगभग सभी सिक्योरिटी गार्ड 12 घण्टे नौकरी करके 8 घंटे का वेतन प्राप्त करते हें
जबकि उनको साप्ताहिक अवकाश / अर्जित अवकाश, चिक्तिसा अवकाश जो दिल्ली दुकान एवं
संस्थान अधिनियम 1954 के अंतर्गत मिलने चाहिए वह भी नहीं मिलते।
दिल्ली की मुख्यमंत्री महोदया आतिशी जी से मांग - श्रम विभाग में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम
1948 की धारा 20 और दिल्ली दुकान एवं संस्थान अधिनियम 1954 की धारा 21 के अंतर्ग त
न्युनतम मजदूरी से भी कम वेतन देने के और वेतन ना देने के जो लगभग 20 हजार मामले लंबित
है उनमें देरी क्यों हो रही है...? उसका स्पष्टीकरण दें। इसके अतिरिक्त आदेश पारित करने के
पश्चात भी गरीब कर्मचारियों को उनकी देय मजदूरी 8 से 10 वर्षों के पश्चात भी नहीं मिली है
और ये सब मामले डिस्ट्रिकट मजिस्ट्रेट और सब-डिविजन मिजिस्ट्रेट के कार्यालयों में लंबित क्यों है ?
ये कागजी घोषित वेतन को लागू करवाने के लिए दिल्ली सरकार विशेष ड्राइव चलाए। दिल्ली की
मुख्यमंत्री 1 अक्टबर 2024 से मँहगाई भत्ते व नए न्युनतम वेतनमान की घोषणा करने जा रही है।
मँहगाई भत्ते में बढ़ोतरी के बाद अकुशल श्रमिकों का मासिक वेतन रु. 17,494 से रु. 18066,
अर्ध-कुशल श्रमिकों का मासिक वेतन 19,279 से रु. 19,929 कुशल श्रमिकों का रु. 21,215 से
बढ़ाकर रु. 21,917 किया गया है। जो बढ़ोतरी हुई है वह रु. अकुशल रु. 572, अर्ध-कुशल रु.
650 व कुशल 702 रुपये।
दिल्ली सरकार ने ऐसा दर्शाने की कोशिश की है कि मँहगाई भत्ते में बढ़ोतरी मजदूरों को मँहगाई से
राहत देने के लिए की गई है। मुख्यमंत्री या आम आदमी की सरकार ने मँहगाई भत्ते कर कागजी
और मामूली सी बढ़ोतरी किसी पर कोई एहसान नहीं किया बल्कि यह मजबूरी से उठाया गया कदम है, इसका कारण है दिल्ली मे होने वाले विधानसभा चुनाव के लिये खोखला आश्वासन है।
यदि दिल्ली सरकार गरीबों के हित को सोचती है और यदि चाहे तो ळैज् के अंश मे से राज्य
सरकार को ळैज् कम करके गरीबों को राहत दे सकती है।15-20: से अधिक हर चीज मँहगी
हुई है किन्तु मंहगाई भत्ता मात्र 3ः ही बढ़ाया गया है वह भी कई वर्षों से गरीब कर्म चारियों को
नहीं मिला है। न्युनतम वेतन अधिनियम 1948 के मुताबिक हर पांच साल में न्युनतम वेतन को
रिवाइज (संशोधित) करने का प्रावधान है। दिल्ली में पिछले संशोधित न्युनतम वेतन की घोषणा के
बाद से पांच साल से अधिक का समय बीत चुका है, जिस तरह से मंहगाई बढ़ी उसमे तुरंत जरुरत
है मिनिमम वेजेस एडवाइजरी बोर्ड के पुनर्गठन की और नए संशोधित न्युनतम वेतनमान की। दिल्ली
सरकार सही मायने में दिल्ली के मजदूरों को राहत देना चाहती तो उसे दस वर्ष पहले उठाने चाहिए
थे, दिल्ली के 95ः मजदूरों को घोषित न्युनतम वेतनमानों का मात्र 60ः तक का वेतन ही मिलता
है। कोरोना की आड़ में कई फैक्ट्रियो और संस्थानों में 20-30 फीसदी की वेतन कटौती की र्गइ
थी। मजदूर चुपचाप सह गया और जिन्होंने कोई दावा लगाया उनको नौकरी से निकाल दिया। कोविड काल के दौरान लगभग 5 से 7 लाख मजदूरों को संस्थानों के मालिकों ने नौकरी से निकाल दिया
और वे दिल्ली छोड़कर चले गये। दिल्ली में रोजगार विभाग भी है जिसमें 20-30 साल पूर्व के
लगभग 125 अधिकृत/स्वीकृत पदों में से मात्र 30 अधिकारी व कर्मचारी कार्य रत है बाकी पद रिक्त
पड़े हैं। इसी प्रकार श्रम विभाग में 35ः पद रिक्त है। पिछले 10 वर्षों में दिल्ली की सरकार
रोजगार विभाग के माध्यम से मात्र 500 से 2000 रजिस्टर्ड बेरोजगारों को रोजगार दे पाया ह ै।
क्योंकि श्रम विभाग में निरीक्षक/ अधिकारियों के पद रिक्त पड़े है इस कारण श्रम कानूनों को ताक
पर रखकर मजदूरों से 10-12 हजार में 10-12 घंटे रोज काम लिया जाता है, महिला श्रमिक 8-10
हजार रू. में काम करने को मजबूर है। दिल्ली सरकार उल्लघंनकर्ता मालिकों की संरक्षक बन चुकी है मुख्य बात यह है दिल्ली सरकार के पास न्यूनतम वेतन को लागू करवाने की राजनैतिक इच्छाशक्ति ही नहीं। सत्य अभियान दिल्ली सरकार से मांग करता है कि वर्षों से बार-बार घोषित मंहगाई दर के
अनुसार जो वेतनमान लागू नहीं हुय हैं उन्हे लागी कराये अन्यथा ये खोखले वादे और घोंषणा करना
बन्द करे यही सच्ची ईमानदारी होगी जो आज कल देखने सुनने को नहीं मिल रही है।