संप्रग सरकार में संकटमोचक की भूमिका में रहे प्रणब की जीत के बाद पहली प्रतिक्रिया थी, 'इस चुनाव में आम चुनाव जैसा माहौल था। मैं उन लोगों का धन्यवाद देता हूं जिन्होंने पार्टी लाइन से आगे बढ़कर मेरा समर्थन किया।' अपने पांच दशक के सार्वजनिक जीवन में सहयोग के लिए उन्होंने सभी लोगों का धन्यवाद देते हुए वादा किया कि बतौर राष्ट्रपति संविधान का संरक्षक होने के नाते वह अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह पूरी ईमानदारी और विनम्रता से करेंगे।
जीत से भावुक प्रणब ने कहा कि उन्होंने जितना राजनीति को दिया, उससे कहीं ज्यादा उन्हें मिला। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार समेत तमाम नेताओं का प्रणब के घर बधाई देने के लिए तांता लगा रहा।
19 जुलाई को हुए मतदान में 776 सांसदों में 748 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें प्रणब को 527 और संगमा को 206 मत मिले। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव सहित 15 सासदों के मत खारिज कर दिए गए। राज्यों में भी गुजरात, मप्र, तमिलनाडु, ओडिशा, पंजाब, हिमाचल और छत्ताीसगढ़ को छोड़कर सभी सूबों में प्रणब ने संगमा को चारों खाने चित्ता किया। भाजपा शासित कर्नाटक में भी संगमा की तुलना में प्रणब को ज्यादा वोट मिले। बिहार और झारखंड में तो खैर राजग के सहयोगी दल पहले ही प्रणब के पक्ष में थे, लिहाजा भाजपा गठबंधन वाले राज्यों में दादा ही जीते।
जीत के लिए मुखर्जी को 5,25,140 का आंकड़ा पार करना था। संसद भवन में दिनभर चली मतगणना के बाद प्रणब को 7 लाख 13 हजार से ज्यादा वोट मिले और उन्हें विजयी घोषित कर दिया। संगमा 3 लाख 16 हजार वोटों पर सिमट गए। मतगणना के दौरान प्रणब की तरफ से पी. चिदंबरम, पवन कुमार बंसल, राजीव शुक्ला, वी. नारायणसामी और पबन सिंह घटोवार जमे रहे। संगमा के प्रतिनिधि सत्यपाल जैन और भर्तृहरि महताब मौजूद रहे।
प्रणब के पक्ष में माहौल शुरू से कुछ ऐसा था कि चुनाव और मतगणना सिर्फ औपचारिकता ही थी। तृणमूल के समर्थन के बाद कुछ बचा नहीं था। प्रणब को केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे सपा, बसपा, राजद, जद के अलावा राजग सहयोगियों झामुमो, जदयू और शिवसेना के साथ-साथ माकपा एवं फारवर्ड ब्लाक का भी समर्थन हासिल था। संगमा को भाजपा, अकाली दल, असम गण परिषद, अन्नाद्रमुक और बीजद ने समर्थन दिया था। भाकपा, तेदेपा और टीआरएस ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।