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18/11/2013   बस कंडक्टर से ऐक्टर बने जॉनी वाकर
मुंबई की धरती पर सचिन तेंडुलकर ने अपना 200वां टेस्ट मैच खेला और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। क्रिकेट के दीवाने भावुक हो उठे, मगर यह भावुकता तब प्रसन्नता में बदल गई जब सचिन को 'भारत रत्न' से नवाजे जाने का सरकारी ऐलान हुआ।

 

17/11/2013   बस कंडक्टर सम्मानित सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर काफी दिनों से सचिन के लिए इस सम्मान की मांग कर रही थीं। लता की तरह इंदौर में पैदा हुए हास्य अभिनेता जॉनी वाकर भी क्रिकेट का शौक रखते थे। प्राकृतिक और राष्ट्रीय आपदा के समय चंदा संग्रह के लिए दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर के साथ चैरिटी मैचों में उन्होंने ठहाकों के खूब चौके-छक्के लगाए। इस हफ्ते उनकी जयंती थी।

सचिन ने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' पाकर मुंबई का सिर ऊंचा कर दिया और मुंबई का नाम सामने आते ही होठों पर बरबस मचल उठता है 'सीआईडी' फिल्म का गीत 'ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, ज़रा हटके ज़रा बचके ये है बॉम्बे मेरी जां', जो जॉनी वाकर पर फिल्माया गया था। गीत में ट्राम और मिलों का जिक्र है, जो अब नहीं हैं। अब लोकल ट्रेनें और मॉल हैं। मुंबई का चेहरा निश्चय ही काफी बदल चुका है, मगर आम आदमी की मुश्किलें वही हैं और हां, बेस्ट की बसें भी वही हैं। ऐसी ही एक बस में कंडक्टर हुआ करते थे बदरुद्दीन काज़ी। उनके पिता जमालुद्दीन काज़ी इंदौर में मिल मज़दूर हुआ करते थे। आर्थिक संकट के कारण जब लंबे-चौड़े परिवार का भरण-पोषण कठिन हुआ, तो सपरिवार मुंबई (तब बॉम्बे या बम्बई) चले आए।
बदरुद्दीन को बस कंडक्टर की नौकरी मिल गई। शुरू से सिनेमा का जुनून था और लोगों की नकल उतारने में माहिर थे, सो बस में मिमिक्री से यात्रियों का मनोरंजन करते रहते थे। माहिम में एक एक्स्ट्रा सप्लायर ने देखा, तो फिल्मों में एक्स्ट्रा का काम ऑफर किया। भीड़ में खड़े होने एवज में 5 रुपये मिलते, जिसमें से एक रुपया सप्लायर ले लेता। शूटिंग के बीच में फुर्सत के दौरान सितारों के मनोरंजन के लिए लोग अक्सर बदरू को बुला लेते और लतीफे सुनाने को कहते। 'हलचल' की शूटिंग पर बलराज साहनी ने जब बदरू को दिलीप कुमार, याकूब जैसे स्टार्स का मनोरंजन करते देखा, तो उन्हें बुरा लगा। उन्होंने बाद में बुलाकर बदरू से कहा, 'तुम कलाकार हो, भांड नहीं। कला की इज्जत करना सीखो।'
बदरू ने जब अपनी मजबूरी बताई, तो बलराज साहनी ने उन्हें एक आइडिया सुझाया और अगले दिन गुरुदत्त के ऑफिस में आने को कहा। बलराज साहनी उन दिनों 'बाज़ी' की स्क्रिप्ट लिख रहे थे। अगले दिन गुरुदत्त अपने ऑफिस में चेतन आनंद के साथ कुछ डिस्कस कर रहे थे कि बदरुद्दीन अचानक आ धमके और शराबी की ऐक्टिंग शुरू कर दी। उन्होंने न सिर्फ धमाल मचाया, बल्कि गुरुदत्त के साथ बदतमीजी भी शुरू कर दी। हरकतें जब हद को पार करने लगीं, तो गुरुदत्त को गुस्सा आ गया। उन्होंने स्टाफ को बुलाया और शराबी को बाहर सड़क पर फेंक आने का फरमान जारी कर दिया। तभी बलराज साहनी हंसते हुए वहां आ पहुंचे और गुरुदत्त को सारा माजरा समझाया। गुरुदत्त इतने खुश हुए कि पीठ थपथपा कर न केवल उनकी ऐक्टिंग की दिल खोलकर तारीफ की और 'बाज़ी' में फौरन एक रोल दिया, बल्कि बदरुद्दीन काज़ी को जॉनी वाकर (नामी शराब) का नया फिल्मी नाम दे डाला।




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