इधर, एलआइयू की ओर से गृह मंत्रालय और डीजी कंट्रोल को इस मामले पर भेजी रिपोर्ट में ये बात साफ उजागर हुई है कि मस्जिद की दीवार गिराते वक्त दुर्गा वहां मौजूद नहीं थी, ऐसे में सरकार उन्हें निलंबित कैसे कर सकती है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने रिपोर्ट देखने के बाद राज्य सरकार से ये सवाल किया है।
पढ़ें: जब गिरी दीवार तो दुर्गा मौके पर नहीं थीं
उन्होंने प्रदेश सरकार से पूछा है कि जब रिपोर्ट में दुर्गा शक्ति का नाम है ही नहीं तो सरकार उन्हें निलंबित कैसे कर सकती है। उन्होंने तीखे सूर में कहा कि ऐसी सरकार को बने रहने का कोई हक नहीं। उन्होंने मांग की है कि दुर्गा का निलंबन वापस लेने के साथ ही प्रदेश सरकार सूबे की जनता से माफी मांगे, अन्यथा सत्ता छोड़ दे।
इधर, रिपोर्ट की जमकर आलोचना हो रही है। एलआइयू की रिपोर्ट 'कतिपय' 'प्रशासन का कहना है' जैसे शब्दों के इस्तेमाल से तैयार की गई है। अगर विशेषज्ञ एजेंसी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करेगी तो फिर उसकी खुफियागिरी का अर्थ क्या है?प्रदेश सरकार ने गौतमबुद्धनगर सदर की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को मस्जिद की दीवार ढहाने के आरोप में निलंबित कर दिया था। विपक्षी दलों की ओर से इस कार्रवाई के पीछे खनन माफिया का हाथ होने का आरोप लगाये जाते ही हंगामा हो गया।
ऐसे मामले में गौतमबुद्धनगर की एलआइयू ने पुलिस उपमहानिरीक्षक (इंटेलीजेन्स) को जो रिपोर्ट भेजी, उसकी शुरुआत 'विदित हुआ है' से की है। इसमें कहा गया है कि मुस्लिमों ने रघुपुरा थाने के कादलपुर गांव में मस्जिद की निर्माण शुरू कराया था, जिसकी तीन तरफ की 10-10 फुट दीवार खड़ी हो गई थी। जिसे सीओ, एसडीएम जेवर व थानाध्यक्ष रघुपुरा ने मौके पर जाकर गिरवा दिया। अब फिर एलआइयू ने लिखा है कि 'प्रशासन का कहना है,' 'मस्जिद' निर्माण की अनुमति नहीं होने पर यह कार्यवाही की गई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गांव में चार हजार की आबादी है, जिसमें 70 फीसद मुस्लिम और 30 फीसद हिन्दू हैं। मस्जिद निर्माण के लिए तीन माह पहले सपा के घोषित प्रत्याशी नरेन्द्र भाटी ने 51 हजार रुपए की आर्थिक मदद की थी। अब मुस्लिम समाज पंचायत कर आगे की कार्यवाही पर विचार कर रहा है।
सवाल यह उठता है कि जब एलआइयू का मुख्य कार्य ही खुफिया जानकारी प्रशासन और सरकार तक भेजना होता है तो फिर उसने कतिपय, विदित हुआ है जैसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया? यानी रिपोर्ट तैयार करने से पहले एलआइयू के अधिकारियों ने मौका मुआयना ही नहीं किया। फिर रिपोर्ट तैयार करने से पहले ग्राम प्रधान, सरकारी अधिकारियों के नाम, 10-10 फुट ऊंची दीवार गिराने में इस्तेमाल मशीन, उपकरणों का जिक्र क्यों नहीं किया?
'दैनिक जागरण' के पास मौजूद रिपोर्ट यूपी के गृह विभाग, डीजीपी कन्ट्रोल रूम को 27 जुलाई को शाम पांच बजकर 10 मिनट पर भेजे जाने का उल्लेख किया गया है। मस्जिद की दीवार गिराने का समय भी दोपहर एक बजे बताया गया है। तब एलआइयू अधिकारियों इस गंभीर प्रकरण की ठीक से पड़ताल क्यों नहीं की। बहरहाल सवाल ये भी है कि जब दीवार गिराने कौन-कौन से अधिकारी गये थे?
शासन के सूत्रों मुताबिक दुर्गा नागपाल को नोएडा सदर की एसडीएम थीं, ऐसे में सवाल यह है कि कादलपुर गांव की घटना में निलंबन क्यो हुआ? अगर वह दीवार गिराने गयी थी तो गलत रिपोर्ट तैयार करने वाले एलआइयू अधिकारियों के खिलाफ अब कार्रवाई क्यों नहीं हुई? एलआइयू ने जिन अधिकारियों को मौके पर जाना बताया है कि वह सरकार की कार्रवाई की जद से बच कैसे गए?