या फिर कोई नेता। लेकिन वह तो एक आम महिला थी, जो सामाजिक बंदिशों के कारण अपने इस अधिकार से इतने सालों तक वंचित रही। वाकया गुजरात के सूरत शहर का है। अपने ही घर में पुलिस की निगरानी में रहने वाली दाउदी वोहरा समाज की जेहरा साइकिलवाला के लिए इस बार का रमजान महीना खुशियां लेकर आया। क्योंकि 28 साल के बाद जेहरा को फिर से मस्जिद के भीतर नमाज अदा करने का मौका मिला। दरअसल जेहरा साइकिलवाला को पिछले 28 वर्षो से समाज ने बहिष्कृत कर रखा था। जेहरा एक बैंक में नौकरी करती हैं। यह उनके समाज को मंजूर नहीं था। दाउदी वोहरा समाज का मानना है कि बैंक के लोग ब्याज खाते हैं, जो कि उनके धर्म के खिलाफ है। इस कारण उन्हें और उनके परिवारवालों को मस्जिद में भी जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी। पिछले 28 वर्षो में इन बंदिशों के साथ सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाने वाली जेहरा साइकिलवाला पर जानलेवा हमले भी हुए। इस लड़ाई में जेहरा का सहयोग करने वाली उनकी मां की मौत के बाद कब्रिस्तान में उन्हें दो गज जमीन भी नहीं दी गई। हालांकि बाद में मीडिया और पुलिस के सहयोग से उनकी मां को कब्र तो नसीब हो गई लेकिन जेहरा के लिए मस्जिद का रास्ता बंद ही रहा।
आखिरकार गुजरात हाई कोर्ट से गुहार लगाने के बाद जेहरा को पुलिस सुरक्षा दी गई। पुलिस घेरे में गुरुवार को जब वह मस्जिद पहुंची तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
1985 से 2013 का सफर
-1985 में वोहरा समाज के धर्मगुरु डॉक्टर सैयदना साहब ने फतवा जारी किया था कि दाउदी वोहरा समाज का कोई भी व्यक्ति बैंकों में नौकरी नहीं करेगा। जो इस फतवे का पालन नहीं करेगा उसे धर्म से बाहर कर दिया जाएगा।
-फतवे के बाद भी जेहरा ने नौकरी नहीं छोड़ी। इसीलिए 1985 में उन्हें धर्म औ समाज से बाहर कर दिया गया। बहन और भाई ने उन पर नौकरी छोड़ने का काफी दबाव बनाया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
-बहन और भाई के अलग होने के बाद उनकी मां ने ही उनका साथ दिया। लेकिन 1991 में उनका इंतकाल हो गया। इसके बाद जेहरा अपनी लड़ाई में अकेले रह गईं।
-2008 में गुजरात हाई कोर्ट ने सरकार को जेहरा को 13 साल तक पुलिस सुरक्षा देने का आदेश जारी किया था। इस आदेश के पांच साल बाद जेहरा गुरुवार को पुलिस घेरे में ही मस्जिद पहुंचीं और नमाज अदा की।