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09/07/2013   भारत में विज्ञान' से संबंधित वैज्ञानिक सलाहकार परिषद की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर प्रधानमंत्री का भाषण
नई दिल्ली:प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नई दिल्ली में "भारत में विज्ञान (2004-13) : उपलब्धियों और बढ़ती अपेक्षाओं का दशक" पुस्तक का विमोचन किया। इसका संकलन प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद द्वारा किया गया है।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण का विवरण इस प्रकार है- "इस महत्वपूर्ण पुस्तक का विमोचन करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। यह पुस्तक पिछले दशक में भारत में विज्ञान की प्रगति और महत्वपूर्ण उपलब्धियों को दर्शाती हैं। लगभग एक दशक पहले सत्ता में आने के बाद हमारी सरकार ने विज्ञान के प्रयोग से भारत के दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक बदलाव को बढ़ावा देने के लिए कई बुनियादी कदम उठाए हैं। इनमें से कई कदमों के लिए काफी हद तक प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद की ओर से नीति संबंधी सुझाव और जानकारियां मिली हैं। इसलिए मैं प्रोफेसर राव को और उस विशाल वैज्ञानिकसमुदाय को, जिसके आप प्रतिनिधि हैं, इन उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए बधाई देना चाहूंगा। यह पूरी तरह उचित होगा कि इन उपलब्धियों का ठीक तरह से संकलन किया जाए और इनका प्रचार किया जाए, ताकि हम इन्हें सामने रखते हुए आगे की विकास योजनाएं बनाएं और परिषद द्वारा बताए गए मार्ग पर चलते हुए भारत को ज्ञान, समृद्धि और शक्ति सम्पन्न देश बनाएं। परिषद के परामर्श और सिफारिशों के आधार पर सरकार ने पिछले एक दशक की अवधि में पाँच नई भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थाओं, आठ नये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा उच्च शिक्षा के कई उत्कृष्ट केन्द्र की स्थापना की है। विदेशों में रहने वाले भारतीयों को भारत में अनुसंधान क्षेत्र में अपना भविष्य (कैरियर) बनाने के लिए आकर्षित करने के वास्ते जोरदार प्रयास किए गए हैं और जैसा कि हमने यहां कुछ प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों से सुना है, इस प्रयास के अच्छे परिणाम सामने आने लगे हैं। परिषद ने एक दृष्टिकोण पत्र भी बनाया है और राष्ट्रीय विज्ञान क्षेत्र के विकास के लिए रुपरेखा भी तैयार की है, जिसकी हमें अगले कुछ वर्षों में नियोजित ढंग से आगे बढ़ने के लिए आवश्यकता है। पिछले एक दशक में हमने दो विषय-वस्तुओं पर विशेष ध्यान दिया है। पहला यह कि हमने वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अपने संस्थागत तंत्र को व्यापक और सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया है। दूसरा यह कि हमने हमारे लोगों को बहुत समय से प्रभावित कर रहीं व्यवहारिक समस्याओं से निपटने के लिए विज्ञान का इस्तेमाल करने की कोशिश की है, जैसे बीमारी, कुपोषण, दुर्बलता, स्वच्छता और सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था आदि। मेरा हमेशा यही मानना रहा है कि हमारे वैज्ञानिकों को पोषण और खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और पर्यावरण सुरक्षा तथा पानी और स्वच्छता से संबंधित जरूरी राष्ट्रीय समस्याओं के व्यवहारिक हल ढूंढने चाहिएं। हमें ऐसे तरीकों की आवश्यकता है, जिनसे हमारे नवीनीकरण की उपलब्धियां प्रदूषण रहित हों और अधिक से अधिक लोगों को उचित लागत पर इनका लाभ मिले। इस दशक के अधिकतर भाग में आर्थिक विकास की दर अच्छी रहने से विज्ञान क्षेत्र को मजबूत बनाना संभव हुआ है और पिछले समय के मुकाबले इस क्षेत्र ने राष्ट्र निर्माण की प्रक्रियाओं में और अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दिया है। आज हालांकि हमारे आर्थिक विकास की दर कुछ कम हुई है, लेकिन विज्ञान से हमारी अपेक्षाएं कम नहीं होनी चाहिए और विज्ञान क्षेत्र में जो गतिशीलता बनी है, वह समाप्त न हो जाए, क्योंकि निरंतर विकास और कल्याण के लिए विज्ञान क्षेत्र बुनियादी आधार तैयार करता है।  इस वर्ष के शुरू में लाई गई विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवीनीकरण की नई नीति का उद्देश्य भारत को विज्ञान के क्षेत्र में विश्व भर में अग्रणी बनाना है। इसके लिए जरूरी है कि लगातार प्रतिभाशाली लोग इस क्षेत्र में आएं। हमें सुदृढ़ और उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक और वैज्ञानिक संस्थाओं की आवश्यकता है, जो प्रतिभाओं की पहचान कर सकें और उन्हें आगे बढ़ा सकें। हमें एक ऐसी पारिस्थितिकी प्रणाली की भी आवश्यकता है, जिसमें नई वैज्ञानिक जानकारियों को समावेशित किया जा सके और आर्थिक उन्नति तथा समृद्धि के लिए और लोगों की विशिष्ट समस्याओं को हल करने के लिए नवीनीकरण किया जा सके। 

इसमें कोई संदेह नहीं कि विज्ञान के लिए पर्याप्त धन राशि की आवश्यकता है और हमारी सरकार ने इस पहलु को उच्च प्राथमिकता दी है। हम अनुसंधान और विकास में राष्ट्रीय निवेश को दोगुना यानी सकल घरेलू उत्पाद के मौजूदा एक प्रतिशत के स्तर से दो प्रतिशत करना चाहते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि निजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश में तेजी से वृद्धि नहीं हुई है। अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाना और प्राप्त ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए, उसे संपदा में बदलने की कोशिश करना एक चुनौती है, जिस पर मैं चाहूंगा कि परिषद गौर करे। विज्ञान हमारे लोगों के सशक्तिकरण और उत्थान के लिए एक साधन है। जब तक हमारी आंतरिक विसंगतियां दूर नहीं होतीं, भारत विभिन्न मानव विकास मानदंडों के क्रम में पीछे ही दिखाई देता रहेगा। मैं वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह करुंगा कि वह हमारे अनुसंधान और विकास के लाभों को और बेहतर ढंग से लोगों तक पहुंचाने के लिए नये तरीके खोजें। नई और उभरती प्रौद्योगिकियों से जो अवसर पैदा हो रहे हैं, लोगों में और राजनीतिक स्तर पर उसकी समझ काफी हद तक बढ़नी चाहिए। मैं चाहूंगा कि परिषद सोच में बदलाव लाने पर जोर दे, ताकि हम जरुरी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए नई प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल को खुले तौर पर अपना सकें। अंत में मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि पिछले दशक में भारतीय विज्ञान की उपलब्धियां नि:संदेह बहुत ही प्रभावी रही हैं, लेकिन हमें अपनी इन उपलब्धियों पर संतोष नहीं करना चाहिए। जैसा हमने अब तक किया है, हम अब भी कर सकते हैं और आने वाले वर्षों में हमारा लक्ष्य और भी ऊँचा होना चाहिए। मुझे विश्वास है कि यह वैज्ञानिक सलाहकार परिषद और प्रोफेसर सी एन आर राव का नेतृत्व भारतीय विज्ञान की सीमाओं को एक-साथ उत्कृष्टता और उपयोगिता के दोनों आयामों में आगे बढ़ाता रहेगा, जैसा कि श्री जयपाल रेड्डी ने उल्लेख किया है। 


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