08/07/2013 ये मंदिर भी आतंकी निशाने पर
गोरखपुर। आतंकी वारदातों के लिहाज से गोरखपुर-बस्ती मंडल के संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा इंतजाम भगवान भरोसे है। गोरखपुर एयरपोर्ट को छोड़कर सभी स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था में खोट ही खोट है। गोरखनाथ मंदिर की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के लिए शासन-प्रशासन की ओर से कई बार योजना बनाई गई, लेकिन यहां भी जो इंतजाम हैं, बस देखने और गिनाने भर के लिए।
हाल ही में गोरखनाथ मंदिर सहित प्रमुख स्थलों, मंदिरों की सुरक्षा का जायजा ले चुके आतंकवाद निरोधी दस्ता (एटीएस) की रिपोर्ट का लब्बोलुआब तो यही है। हालांकि एटीएस का कोई अफसर इस बाबत अधिकारिक रूप से बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था की कमियों को लेकर उन्होंने स्थानीय प्रशासन एवं सरकार एलर्ट किया है। आतंकी घटनाओं के लिहाज से एटीएस ने दोनों मंडलों के आठ स्थानों को संवेदनशील स्थल के रूप में चिन्हित किया है। बीते सप्ताह में एटीएस के कमांडो ने उन स्थानों का भ्रमण कर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया। मकसद संभावित हमले से निबटने की बाबत कार्ययोजना बनाना है। उन स्थानों का मुआयना करने के बाद उन्होंने अपनी एक रिपोर्ट तैयार कर अपने अफसरों को भेजी है। एटीएस सूत्रों की मानें तो देश के किसी भी हिस्से में आतंकी घटना के तत्काल बाद सुरक्षा इंतजाम को लेकर कुछ दिन तक खूब सक्रियता दिखाने वाले प्रशासन को यह रिपोर्ट आइना दिखा रही है। किसी घटना के बाद दो-तीन दिन तक हर जगह जांच-पड़ताल, गश्त ऐसे की जाती है कि मानों अब सब कुछ चाक-चौबंद हो जाएगा, लेकिन फिर सब कुछ भूल जाता है। सूत्रों के मुताबिक एटीएस की जांच में पाया गया कि गोरखनाथ मंदिर में मानक के हिसाब से काफी कम पुलिस बल की तैनाती है। जो पुलिसकर्मी वहां तैनात किए गए हैं वे सजा वाली पोस्टिंग मानकर सिर्फ दिन काट रहे हैं। सीसीटीवी कैमरे तो लगे हैं, लेकिन उसे मानिटर करने वाला कोई नहीं है। डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर लगे हैं, लेकिन वहां भी कोई देखने वाला नहीं है। प्रवेश द्वार पर पुलिस का थोड़ा-बहुत तामझाम तो दिखता है लेकिन चेकिंग की सुचारू व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि मंदिर में प्रवेश करने वालों को सतर्क निगरानी का अभाव महसूस होता है। खलीलाबाद में तामेश्वरनाथ मंदिर व कोतवाली के बगल में स्थित सम्मय माता का मंदिर, महराजगंज में लेहड़ा देवी और इटहिया के शिव मंदिर तथा बस्ती के भदेसर मंदिर को भी एटीएस ने संवेदनशील स्थानों की सूची में शामिल कर रखा है। रिपोर्ट के हिसाब से यहां सुरक्षा इंतजाम के नाम पर कुछ नहीं है। इन सभी मंदिरों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। अक्सर भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। इस काम में लोकल थानों की पुलिस महत्वपूर्ण अवसरों पर विशेष इंतजाम तो करती है लेकिन आमतौर पर वह चुप्पी ही साधे रहती है। पर्यटन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण कुशीनगर में बौद्ध मंदिर संवेदनशील स्थानों की एटीएस की सूची में ऊपर है, लेकिन वहां भी सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं है। कसया थाने की कुशीनगर चौकी के उन्हीं 9 पुलिसकर्मियों को ही इस पर्यटन स्थल की भी सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है जो अक्सर क्षेत्र के सियासी कार्यक्रमों एवं ग्रामीण क्षेत्रों की कानून व्यवस्था की समस्या सुलझाने में ही उलझे रहते हैं। यह स्थिति तब है, जब यहां देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। पर्यटन विभाग ने भी यहां महज दो पर्यटक पुलिस की तैनाती की है, जो इधर-उधर बैठकर किसी तरह अपनी ड्यूटी पूरी करते हैं। सर्वाधिक हैरान करने वाला तथ्य यह है कि पूर्व में अनेक बार खुफिया एजेंसियों ने कुशीनगर में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत को लेकर प्रशासन एवं सरकार को एलर्ट किया है लेकिन इस दिशा में कोई कारगर पहल अब तक नहीं हो सकी है। न तो वहां सीसीटीवी कैमरे सक्रिय किए जा सके हैं न ही मुख्य मंदिर में प्रवेश करने वालों की चेकिंग के लिए मेटल डिटेक्टर ही लगाया गया है। ऐसी ही स्थिति सिद्धार्थनगर के कपिलवस्तु की भी है जहां सुरक्षा के नाम पर एक सिपाही तक की अलग से तैनाती नहीं की गई है। यहां के स्तूप की सुरक्षा भी लोकल पुलिस के रहमोकरम पर है।
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