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25/05/2013   दसवीं मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया
इस अवसर पर डॉ० अमरनाथ अमर, निर्माता निर्देशक, दूरदर्शन, नई दिल्ली मुख्य अतिथि के रूप में पधारे तथा विशेष आमंत्रित कवि के रूप में मास्टर महेन्द्र, सुपरिचित हास्य कवि, झज्जर मौजूद रहे। समारोह की अध्यक्षता, पूर्व अकादमी निदेशक, श्री राधेश्याम शर्मा जी ने की।

पूर्व अकादमी निदेशक, श्री राधेश्याम शर्मा  ने समारोह की अध्यक्षता करते हुए लेखकों से अपील की कि वे अपनी रचनाओं को सामाजिक सरोकारों एवं जीवन के यथार्थ से जोडें़। संगोष्ठी के आयोजन की इस अनूठी पहल को साहित्य के विकास में एक अहम कदम तथा साहित्य को युवा पीढ़ी के मार्गदर्शन का उचित माध्यम बताया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ० अमरनाथ अमर ने अकादमी की मासिक संगोष्ठी योजना को एक अनूठी पहल बताते हुए यह आशा व्यक्त की कि इस तरह के आयोजन सभी प्रमुख शहरों में मासिक तौर पर किये जाने चाहिए। उनके द्वारा किये गये कविता पाठ को श्रोताओं द्वारा खूब सराहा गया। प्रेम पर आधारित उनकी कविता के कुछ अंश देखिये- 

आज न जाने क्यों अचानक इस रात के अंधेरे में / मेरी स्पन्दित भावनाओं के बीच तुम्हारे स्पर्श की गुदगुदाहट चांदनी बन गयी है। / ए दोस्त यह प्यार ही तो है।

    इस अवसर पर उन्होंने एक बहुत मार्मिक गीत भी सुनाया- तिनका-तिनका हम बटोरें उस घरौन्दे के लिए, जिसमे रहते थे कभी जीने-मरने के लिए।

फूल खिलते थे जहां पर गुनगुनी सी धूप में, कलियां कह जाती बहुत कुछ गुनगुनाते मधुप से, जुल्फें खुल जाती बिखर के फिर संवरने के लिए।

        विशेष आमंत्रित कवि मास्टर महेन्द्र ने अपनी हास्य कविताओं से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। उन्होंने इस अवसर पर बाबा का चमत्कार, खम्भे ही खम्भे तथा दादी का घाघरा आदि कविताओं एवं हरियाणवी चुटकुलों के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति के विभिन्न पक्षों को अनूठे ढंग से प्रस्तुत किया।

        अकादमी निदेशक डॉ. श्याम सखा श्याम ने कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों का स्वागत किया।  उन्होने लोक साहित्य और लोक भाषा के संरक्षण की अपील की तथा लेखकों से आग्रह किया कि वह अपनी रचनाओं में लोक भाषा के शब्दों का अधिक से अधिक प्रयोग करें। इस अवसर पर कविता पाठ करते हुए उन्होंने ने कहा- तेरे मन पहुंची नहीं मेरे मन की बात, नाहक हमने फेरे लिए सात। महिलाओं की जिन्दगी पर एक लम्बी गजल प्रस्तुत करते हुए उन्होंने ने कहा- कांच का बस एक घर है लड़कियों की ज़िन्दगी। नयी ़गज़ल के रूप में उन्होंने कहा- प्यार होता है सभी को ज़िन्दगी में एक बार / प्यार का इजहार भी हो यह ज़रूरी तो नहीं / मेरे घर में घूमता रहता है दिनभर एक चांद/ चांद हो और रात भी हो यह ज़रूरी तो नहीं। इस अवसर पर स्थानीय कविता पाठ सत्र में सर्वश्री गणेश द॔ा, श्री सूबे सिंह मौर्य, श्रीमती लक्ष्मी रूपल एवं श्री सुशील हसरत नरेलवी और नरेन्द्र विवेक ने भी कविता पाठ किया। कार्यक्रम का मंच संचालन डॉ. विजेन्द्र कुमार ने किया।

    अकादमी निदेशक, डॉ. श्याम सखा श्याम ने अतिथियों, मीडिया कर्मियों, पत्रकार बंधुओं तथा अकादमी स्टाफ का धन्यवाद करते हुए यह आश्वासन दिया की भविष्य में भी इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे।



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