हाल ही में लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के नाम के आगे श्री लगा देने और महाराष्ट्र के भंडारा में हुई बलात्कार की घटना के पीड़ितों के नाम का संसद में खुलासा कर देने की वजह से शिंदे की काफी किरकिरी हुई थी। हालांकि, इसमें गलती उन अधिकारियों की बताई गई जिन्होंने वह बयान तैयार किया था।
इस बीच, दिल्ली की एक अदालत ने हिंदू आतंकवाद की कथित टिप्पणी पर केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ दायर मानहानि मामले के संबंध में इस बात पर फैसला एक बार फिर टाल दिया कि केन्द्रीय गृह मंत्री को समन भेजा जाए या नहीं। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अमिताभ रावत याचिका पर आज अपना फैसला सुनाने वाले थे, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इसे 22 मई तक के लिए टाल दिया कि उन्हें कुछ स्पष्टीकरण की जरूरत है। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह शिकायत के समर्थन में उच्चतम न्यायालय के कुछ फैसले पेश करें। अदालत ने याचिकाकर्ता वीपी कुमार की वकील मोनिका अरोड़ा को कहा, दो धाराएं जिस पर आप समन के लिए जोर दे रही हैं, को कुछ स्पष्टीकरण चाहिए। आपको शिकायत के संबंध में उच्चतम न्यायालय के कुछ फैसले दाखिल करने होंगे।
अदालत ने कहा, मुझे समग्र आदेश पारित करना है..आपकी शिकायत 153 (दंगा भड़काने की मंशा से उकसावेबाजी) और 298 (धार्मिक भावनाओं को आहत करने की प्रत्यक्ष मंशा से शब्द इत्यादि कहना) के तहत है। इसलिए आप कुछ फैसले पेश करें। वकील ने एक दिन का समय मांगा। मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए उन्हें यह समय दे दिया कि मैं यह छोटी तारीख दे रहा हूं कि आप फैसले पेश कर सकें। गुरुवार को अदालत ने यह कहते हुए अपना आदेश आज तक के लिए टाल दिया था कि उसने पूरा आदेश तैयार नहीं किया है।