विपक्षी दलों ने विधेयक के मसौदे में किए गए एक संशोधन पर आशंकाएं जताई है। उनके मुताबिक, इसके जरिए गंभीर लापरवाही या खराब आपूर्ति की वजह से हुए एटमी हादसा होने की स्थिति में विदेशी कंपनियों को बचाया जा रहा है।
सीपीआई नेता डी. राजा ने कहा कि वाम दल इन नए बदलावों से सहमत हो नहीं सकते हैं जिनमें कहा गया है कि अगर कोई एटमी हादसा जानबूझकर या इरादतन होता है तभी ऑपरेटर आपूर्तिकर्ता से क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।
हम इसे निष्पक्ष और वैध तर्क नहीं मानते। बीजेपी और लेफ्ट पार्टियां महसूस करती हैं कि किसी एटमी हादसे की हालत में क्लॉज 17 (ए) और (बी) में लिखे गए 'इरादे' शब्द के जिक्र से आपूर्तिकर्ता को उसकी जिम्मेदार से बच निकलने का रास्ता मिल सकता है। इस तरह की किसी दुर्घटना में इरादा साबित करना मुश्किल होगा।
बीजेपी प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने कहा, हम इस बारे में बेहद स्पष्ट हैं कि सप्लायर की जिम्मेदारी से जुड़ी धारा 17(बी) को कमजोर नहीं किया जा सकता। बीजेपी ऐसे किसी बदलाव को मंजूर नहीं करेगी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा, पहली नजर में ऐसा लगता है कि जिस मसौदे पर सहमति बनी थी उससे कुछ भटकाव हुआ है। अब जो भाषा इस्तेमाल की जा रही है उसमें आपूर्तिकर्ता के दायित्व को काफी कुछ कमजोर किया जा रहा है।
गौरतलब है कि एटमी दायित्व विधेयक को इस बदलाव सहित 17 दूसरी सिफारिशों के साथ लोकसभा में 25 अगस्त को पेश किया जाना है। लेफ्ट दलों की यह भी दलील है कि हालांकि, संसद की स्थायी समिति ने तो साफ तौर पर सिफारिश की थी कि परमाणु प्रतिष्ठान में कोई निजी ऑपरेटर नहीं होगा। लेकिन सरकार ने जो संशोधन किए हैं उनके मुताबिक निजी कंपनियां, जब कभी उन्हें अनुमति मिले, बड़े स्तर पर सब्सिडी मिलने के साथ परमाणु ऊर्जा में ऑपरेटर बन सकेंगी। इन दलों का आरोप है कि यह साफ है कि यह सब विदेशी परमाणु आपूतिर्कर्ताओं और घरेलू कॉर्पोरेट लॉबी के दबाव में किया गया है।