एटीएस चीफ राकेश मेहरा ने कहा कि नवंबर 2008 में मुंबई पर हुए हमले ने देश को हैरान कर दिया था, जिससे निपटने के लिए हम तैयार ही नहीं थे। पिछले चार सालों में हमने अपनी रणनीति नए सिरे से बनाई है। एटीएस चीफ ने सुरक्षा की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि मुंबई के पास अब स्टैंडर्ड ऑपरेशन सिस्टम है। कॉन्स्टेबल से लेकर डीजी तक को यह मालूम है कि किसी भी तरह के संभावित हमले से निपटने के लिए उसे किस तरह काम करना है।
मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने भी माना कि फोर्स ने बीती घटना से सबक सीखा है। कमिश्नर ने कहा कि वह आतंकी हमले की संभावना से इनकार नहीं कर सकते लेकिन फोर्स की तैयारी और आत्मविश्वास को लेकर उन्हें कोई संदेह नहीं है।
वहीं, मुंबई को लेकर हो रहे दावों पर एक पूर्व डीजीपी ने ही सवाल खड़े कर दिए। पूर्व डीजीपी की मानें तो मुंबई पुलिस में अब भी कई खामियां हैं। प्रधान कमिटी की कई सिफारिशों को अब भी अमल में नहीं लाया गया है। नाम न बताने की शर्त पर पूर्व डीजीपी ने कहा कि आज भी, पुलिस जवानों के पास ट्रेनिंग और प्रेक्टिस के लिए उम्दा हथियार नहीं है। पूर्व डीजीपी के बयान को एक अन्य पूर्व पुलिस अधिकारी ने भी सही ठहराया है।
राज्य सरकार की 800 करोड़ रुपए से शहर भर में 6,000 सीसीटीवी कैमरे लगाने की महत्वाकांक्षी योजना अब भी प्रस्तावित प्रक्रिया से आगे नहीं बढ़ पाई है। तटीय सुरक्षा के लिए अब भी पेट्रोल बोट की मांग की जा रही है। एम्फीबियन वीइकल्स या तो आउट ऑफ ऑर्डर हैं या फिर बिना ईंधन के हैं। जिन पुलिसकर्मियों की नियुक्ति समुद्री सुरक्षा के लिए की गई है उनमें से कई तैरना भी नहीं जानते। इसके अलावा, नैशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) की तर्ज पर राज्य सरकार द्वारा गठित फोर्स वन के पास मुंबई में ट्रेनिंग सेंटर भी नहीं है।
बावजूद इसके, पाटिल सिर्फ सीसीटीवी कैमरा लगाने के प्रक्रिया को ही चिंता का विषय मानते हैं। सरकार कैमरे लगाने के कॉन्ट्रैक्ट को अलॉट किए जाने की प्रक्रिया के अंतिम चरण में थी लेकिन चयन की गई एक फर्म के ब्लैकलिस्टेड निकलने पर इसे रद्द करना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार को पूरी प्रक्रिया ही दोबारा शुरू करनी पड़ी। गृहमंत्री ने विश्वास जताया कि आने वाले एक साल में मुंबई शहर में सीसीटीवी कैमरों का नेटवर्क बिछा लिया जाएगा।