दरअसल दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर जैसे ही काउंटडाउन खत्म हुआ तो पीछे आग छोड़ता पीएसएलवी रॉकेट भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन पर असीम अंतरिक्ष के लंबे सफर पर चल पड़ा। एक ऐसी मंगल यात्रा पर जो अगर कामयाब हो गई तो लाल ग्रह के रहस्यों से पर्दा उठ सकेगा और अंतरिक्ष में छुपे तमाम संसाधनों के लिए मची होड़ में भारत अहम शक्ति साबित होगा। शुरुआती 5 मिनट ना सिर्फ इसरो स्पेस सेंटर में बरसों से काम कर रहे तमाम वैज्ञानिकों के लिए तनाव भरे थे, बल्कि पूरा देश इस ऐतिहासिक लम्हे के हर पल पर नजर रखे हुए था। 2 बजकर 47 मिनट पर इसरो से खबर आई कि सारे सिस्टम ठीक काम कर रहे हैं। रॉकेट सही दिशा में है। और फिर अपने तय समय 3 बजकर 20 मिनट पर मंगलयान पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गया। खुद इसरो के मुखिया सामने आए और उन्होंने ये खुशखबरी देश और दुनिया को दी।
दरअसल सतीश धवन स्पेस सेंटर से उड़ान भरने के करीब 40 मिनट बाद बारी बारी से इस रॉकेट के चारों चरण अलग हो गए। अंतरिक्ष में पहुंचते ही अंतिम चरण दो हिस्सों में बंट गया और नैनो कार इतना बड़ा मंगलयान बाहर निकल गया। इसके बाद 6 बार मंगलयान के रॉकेट दाग कर उसे पृथ्वी की विशेष कक्षा में लाया गया। अब 20-25 दिन मंगलयान धरती के चक्कर काटेगा और धीरे-धीरे पृथ्वी से दूर होता जाएगा और फिर अचानक पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से आजाद होकर गुलेल से छूटे पत्थर की तरह डीप स्पेस की ओर तेज रफ्तार से बढ़ जाएगा। इसी वक्त उसे मंगल ग्रह की ओर मोड़ दिया जाएगा। इसके बाद वो कम से कम 25 करोड़ किलोमीटर तय करेगा।
अंतरिक्ष में क्या करेगा काम
मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को ही छोड़े जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण इसे टाल दिया गया था। मंगल की अपनी असली यात्रा मंगल यान एक दिसंबर को शुरू करेगा और अगले साल 24 सितंबर तक मंगल की कक्षा में पहुंचकर वहां से डाटा भेजना शुरू करेगा। मगर इस राह में चुनौतियां हजार हैं क्योंकि साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरू किए जा चुके हैं जिनमें से एक तिहाई नाकाम रहे हैं। और तो और अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है। फिर वो चाहे अंतरिक्ष में मानवयुक्त यान भेजने वाला चीन हो या फिर जापान। भारत से उम्मीदें बहुत हैं क्योंकि चंद्रयान और कई सैटेलाइट्स की कामयाबी से दुनिया की नजर भारत की ओर है। अगर भारत को कामयाबी मिलती है तो वो अमेरिका, रूस और यूरोपियन यूनियन के बाद चौथा ऐसा देश होगा। फिलहाल अमेरिका का क्यूरोसिटी मंगल की जमीन पर काम कर रहा है और वहां से तमाम जानकारियां भेज रहा है। क्यूरोसिटी से मिली तस्वीरों से ये तो साफ है कि मंगल के दो ध्रुवों में बर्फ के रूप में पानी है लेकिन मंगल पर मीथेन गैस या फिर यूं कहें कि जीवन के सबूत खोजने का ये मिशन भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम है। मंगलयान को सफलतापूर्वक लॉन्च कर और उसे पृथ्वी की कक्षा में कामयाबी से स्थापित कर इसरो ने पहली जंग जीत ली है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, नेता विपक्ष और बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी समेत पूरे देश ने इस कामयाबी पर वैज्ञानिकों को बधाई दी है। इंसान के मंगलकारी भविष्य के लिए 25 करोड़ किलोमीटर लांघने निकल चुका है हिंदुस्तान का मंगलयान। उसे जाना है अंतरिक्ष में पृथ्वी के पड़ोस तक, यानि मंगल या मार्स तक, वो ग्रह जिसका नाम ग्रीक युद्ध के देवता के नाम पर पड़ा।
30 हजार करोड़ किमी तय करेगा सफर
अंतरिक्ष के बेहद मुश्किल, पेचीदा और खतरनाक सफर को तय करेगा। 25 करोड़ से 40 करोड़ किलोमीटर तक का सफर तय कर वो मंगल को करीब से देखेगा। वहां के वातावरण का हाल जानेगा। जीवन तलाशेगा, जीवन के अवशेष ढूंढेगा। और इस मुश्किल काम को अंजाम देगा, ये छोटा भीम, जी हां, टाटा नैनो के आकार और 1350 किलोग्राम व्रुानी इस मंगलयान को कुछ वैज्ञानिक इसी नाम से बुलाते हैं। ये मंगलयान मंगल के चक्कर काटेगा। लेकिन मंगलयान के लिए अंतरिक्ष में 25 करोड़ किलोमीटर का सफर आसान नहीं। इस दौरान मंगलयान को सौर विकिरण का खतरा होगा। इसे बेहद कम और बेहद ज्यादा तापमान से गुजरते हुए अपने उपकरणों को बचाना होगा। इतना ही नहीं डीप स्पेस में जरा सी चूक अंतकाल तक के लिए किसी भी यान को भटका सकती है। इससे बचने के उपाय भी भारत के काबिल वैज्ञानिकों ने किए हैं। जबरदस्त सर्दी, गर्मी और डीप स्पेस में सौर विकिरण से मंगलयान को बचाने के लिए उसे खास सुनहरे रंग के कवर से लपेटा गया है। चंद्रयान में सेंसर की खराबी से सबक लेते हुए इसमें दो स्टार सेंसर लगाए गए हैं, इससे ये राह नहीं भटकेगा।
क्या-क्या लगा है मंगलयान
मंगलयान में अपना 800 किलोग्राम ईंधन है। 25 करोड़ किलोमीटर के लंबे सफर के दौरान ईंधन बचाना और मंगल के पास पहुंचने पर करीब 9 महीने से सोए पड़े उसके मुख्य इंजन को दोबारा चलाना इसरो के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए मंगलयान में 2 विशेष कंप्यूटर लगाए गए हैं। ये कंप्यूटर दिक्कत होने पर खुद-ब-खुद फैसला लेने औऱ मंगलयान का रास्ता दुरुस्त करने में सक्षम है। 30 नवंबर को पृथ्वी की कक्षा से निकलकर करीब 9 महीने का सफर तय करने के बाद मंगलयान 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंच जाएगा। उसके बाद रॉकेट फायर कर उसे मंगल की उस अंडाकार कक्षा की ओर लाया जाएगा, जहां मार्स की धरती से उसका कम से कम फासला रहेगा। कम से कम दूरी होगी 365 किलोमीटर और अधिक से अधिक 80 हजार किलोमीटर। और फिर वो अगले 6 महीने तक इस अबूझे ग्रह के रहस्य सुलझाने की कोशिश करेगा। इसमें भारत में ही बनाए गए पांच विशेष उपकरण हैं। जो मंगल की सतह पर उतरे बिना ही जीवन के संकेत तलाशेंगे। पहली बार कोई मार्स मिशन ऐसा उपकरण लेकर जा रहा है जो मंगल के वातावरण और सतह में मीथेन की मौजूदगी का पता लगा लेगा। मीथेन यानि जीवन की निशानी। इसके अलावा मंगलयान पर 360 डिग्री की तस्वीरें खींचने वाले विशेष कैमरे लगे हैं। इसमें थर्मल सेंसर भी लगे हैं जो मंगल में मौसम के बेहद तेज बदलाव की वजह तलाशने में मदद करेंगे। मंगल पर पानी की तलाश के लिए भी खास उपकरण लगे हैं।